नई पुस्तकें >> प्रेरक कहानियाँ प्रेरक कहानियाँडॉ. ओम प्रकाश विश्वकर्मा
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सभी आयुवर्ग के पाठकों के लिये प्रेरक एवं मार्गदर्शक कहानियों का अनुपम संग्रह
भलाई का प्रतिदान
किसी वृक्ष की डाल पर एक कबूतर बैठा था। वह वृक्ष नदी के किनारे पर स्थित था। कबूतर डाल पर बैठे-बैठे कभी इधर कभी उधर देख रहा था कि इसी क्रम में उसने नीचे की ओर भी देखा। उसने देखा कि नदी के प्रवाह में एक चींटी बहती हुई जा रही है। चींटी बेचारी लहरों से टक्कर लेती हुई नदी के किनारे लगने का यत्न कर रही थी, किन्तु पानी की धारा उसे बहाये लिये जा रही थी। चींटी परिश्रम करते करते थक गयी थी और कबूतर को लगा कि वह कुछ क्षणों में थक कर चूर हो जायेगी और बहाव में बहकर प्राण गँवा बैठेगी।
कबूतर को उस पर दया आ गयी। उसने अपनी चोंच से एक पत्ता तोड़ा और उसको नदी में इस प्रकार डाल दिया कि वह चींटी के पास जाकर गिरा। कहते हैं डूबते को तिनके का सहारा। चींटी को पत्ता मिल गया तो वह पानी से निकल कर उस पर चढ़ गयी। पत्ता लहरों की टक्कर से किनारे आ लगा। चींटी पानी से बाहर आ गयी। उसने ऊपर देखा तो कबूतर अपनी प्रसन्नता व्यक्त कर रहा था। चींटी ने उसे धन्यवाद दिया और उसके परिश्रम तथा परोपकार की प्रशंसा करने लगी।
उसी समय एक बहेलिया वहाँ आया और कबूतर पर निशाना साधने के विचारसे पेड़ के नीचे छिप कर बैठ गया। कबूतर बहेलिये को नहीं देख पाया था, अन्यथा वह उड़ कर कहीं अन्यत्र चला जाता। चींटी ने उसको देख लिया था।
बहेलिया कबूतर को अपने जाल में फँसाने के लिए अपना बाँस धीरे-धीरे ऊपर को करने लगा। चींटी उसका यह करतब देख रही थी और समझ गयी थी कि कबूतर को इसका कोई आभास नहीं है।वह बहेलिये की मंशा समझ गयी थी। चींटी दौड़कर पेड़ की ओर गयी। यदि उसमें पुकारने की शक्ति होती तो वह कबूतर को सावधान कर देती, किन्तु वह बोलने में तो असमर्थ थी। अपने प्राण बचाने वाले कबूतर की रक्षा करने का उसने निश्चय कर लिया।
चींटी पेड़ के नीचे पहुँची और सावधानी से बहेलिये के पैर पर चढ़ गयी। बहेलिये को इसका आभास नहीं हुआ किन्तु चींटी ने अपना काम किया। उसने बहेलिये की जाँघ पर जोर से अपने दाँत गाड़ दिये। बहेलिया चिल्ला उठा। चींटी के काटने से बहेलिये का ध्यान बँट गया और उसका बाँस जो निशाने पर लगा हुआ था वह हिल गया।बाँस हिलने से पेड़ के पत्ते खड़के व कबूतर सावधान हो गया। पेड़ के नीचे बहेलिये को देख कर वह वहाँ से दूर उड़ कर चला गया। प्रकृति का यह सामान्य-सा नियम है कि जो संकट में पड़े व्यक्ति की सहायता करता है, उस पर संकट आने पर उसकी सहायता का प्रबन्ध भगवान अवश्य कर देते हैं।
चींटी और कबूतर की फिर भेंट नहीं हुई। किन्तु एक-दूसरे की जान बचा कर दोनों ने एक अच्छा उदाहरण प्रस्तुत कर दिया।
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