नई पुस्तकें >> प्रेरक कहानियाँ प्रेरक कहानियाँडॉ. ओम प्रकाश विश्वकर्मा
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सभी आयुवर्ग के पाठकों के लिये प्रेरक एवं मार्गदर्शक कहानियों का अनुपम संग्रह
जाको राखे साइयाँ
वत्सराज का मन राजा मुंज के आदेश पालन और अपने कर्तव्य पालन के निर्णय के बीच झूल रहा था। वह जानता था कि यदि राजा मुंज भोज का खून से लथपथ सिर नहीं देखेगा तो मुझे जीवित नहीं छोड़ेगा।अभी वह इसी उधेड़-बुन में था कि सूर्यास्त हो गया। पश्चिम की लालिमा में उसकी तलवार ऐसे चमक उठी, मानो वह भोज के खून की प्यासी हो।
भुवनेश्वर वन के मध्य में वत्सराज ने रथ रोक दिया और भोज को राजा का आदेश सुनाकर कहा कि मुंज राजसिंहासन का पूरा अधिकार-भोग चाहता है। उसने तुम्हारे वध की आज्ञा दी है। मुझको राजा की आज्ञा का पालन करना चाहिए। भगवान श्रीराम ने वनवास का क्लेश सहा, कृष्ण के होते हुए समस्त यादव कुल का विनाश हो गया। नल को राज्य से च्युत होना पड़ा। सब कुछ काल के अधीन है।
यह सुन कर कुमार भोज ने अपने रक्त से वट-पत्र पर मुंज के लिए एक श्लोक लिखा। वन की नीरवता में काली रात भयानक हो उठी थी । वत्सराज के हाथ में लपलपाती नंगी तलवार ऐसी लगती थी मानो निरपराधी के रक्त से स्नान करने में मृत्यु सहम रही हो। वत्सराज के हाथ से तलवार गिर पड़ी। वह सिहर उठा।
"मैं भी मनुष्य हूँ। मेरा हृदय भी सुख-दुःख का अनुभव करता है।"यह कह कर वत्सराज ने कुमारकोगले लगा लिया, उसके नेत्रों से अश्रुकण बहने लगे। अँधेरा बढ़ता गया।
टिमटिमाते दीप के मन्द प्रकाश में खून से लथपथ सिर देख कर मुंज सहम उठा।उसने पूछा, "मरते समय कुछ कहा भी थाउसने?""हाँ महाराज!"यह कह कर वत्सराज ने वह पत्र मुंज के हाथ में रख दिया। जिसमें लिखा था "इस संसार में मान्धाता जैसे महीपति, सागर पर पुल बाँधने वाले रामचन्द्र, युधिष्ठिर आदि देवलोक को पधार गये, किन्तु किसी के साथ भी यह पृथ्वी नहीं गयी, मुंज निश्चित ही यह तुम्हारे साथ जायेगी।"
मुंज के मुख से निकल गया, "उसने ठीक ही लिखा है। मैंने कितना बड़ा महापाप कर डाला? मैं स्वर्गीय महाराज सिन्धु को क्या उत्तर दूंगा, जिन्होंने पाँच वर्ष के कुमार को मेरी गोद में रख दिया था? मैंने विधवा सावित्री की ममता की हत्या कर दी।"यह कह कर मुंज रोने लगा।
राजमहल में हाहाकार मच गया। मन्त्री बुद्धिसागर ने राजा के शयन-गृह में किसी के भी जाने की मनाही कर दी और खिन्न होकर शयन-गृह से सटे सभा-भवन में बैठ गया। वत्सराज ने उसके कान में कहा, "भोज जीवित है, मैंने नकली सिर दिखाया है।"
यह कहकर वह राजभवन से चला गया। राजा ने रात में ही अग्नि में प्रवेश करना चाहा। धारा नगरी शोक-सागर में डूबी थी। रात धीरे-धीरे अपनी भयानकता फैला रही थी। सभा भवन में एक कापालिक ने आकर बुद्धिसागर से निवेदन किया कि मैं मरे हुए व्यक्ति को जीवित कर सकता हूँ। कटे हुए सिर को धड़ से जोड़ कर उसमें प्राण संचार कर सकता हूँ।
बुद्धिसागर ने राजा मुंज को इसकी सूचना दी। कापालिक की घोषणा सुनकर मुंज सभा-भवन में आया। बोला, "महाराज! मैंने बड़ा पाप किया है। उसके प्रायश्चित के लिए मैंने ब्राह्मणों की सम्मति से अग्नि में प्रवेश करने का निश्चय किया है। मेरे प्राण कुछ ही क्षणों के लिए इस शरीर में हैं। आप कुमार को जीवन-दान दीजिये।"
मुंज ने खून से रंगा सिर कापालिक के हाथों में रख दिया। बुद्धिसागर कापालिक के साथ तत्क्षण श्मशान भूमि पर चला गया।
दूसरे दिन सबेरे धारा नगरी में प्रसन्नता की लहर दौड़ गयी। कुमार भोज कोकापालिक ने प्राणदान दिया, यही बात प्रत्येक व्यक्ति की जीभ पर थी। राजा मुंजने राजसिंहासन भोज को सौंप दिया तथा स्वयं तप करने के लिए वन चले गये।
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