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प्रेरक कहानियाँ

डॉ. ओम प्रकाश विश्वकर्मा

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2020
पृष्ठ :240
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 15422
आईएसबीएन :9781613016817

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सभी आयुवर्ग के पाठकों के लिये प्रेरक एवं मार्गदर्शक कहानियों का अनुपम संग्रह

जिह्वा को वश में रखना

महादेव गोविन्द रानाडे प्रसिद्ध समाजसेवी नेता थे। उनके यहाँ उनके किसी मित्र ने एक दिन अच्छे आम भेजे। उनकी पत्नी ने आम धो-धो कर काट कर रानाडे

के सम्मुख रख दिये। रानाडे ने एक-दो टुकड़े खाकर आमोंके स्वाद की प्रशंसा की और कहा, "इन्हें तुम भी खाकर देखो और सेवकों को भी दे देना।"

पत्नी ने देखा कि पति ने केवल दो-तीन टुकड़े ही खाये हैं। उन्होंने पूछा, "आपका स्वास्थ्य तो ठीक है?"

रानाडे हँसे औरबोले, "तुम यही तो पूछना चाहती हो कि आम स्वादिष्ट हैं फिर भी मैंने अधिक क्यों नहीं खाये? तो देखो, ये मुझे बहुत स्वादिष्ट लगे, इसलिए मैं ने अधिक नहीं लिये।" पति कीयह अटपटी बात पत्नी समझ नहीं पाई और कहा कि यह कैसा उत्तर है कि स्वादिष्ट लगे, इसलिए अधिक नहीं लेना है। । रानाडे ने फिर कहा, "देखो, बचपन में जब मैं बम्बईमें पढ़ता था, तब मेरे पड़ोस में एक महिला रहती थी। वह पहले सम्पन्न परिवार की महिला रह चुकी थी, किन्तु भाग्य के फेर से सम्पत्ति नष्ट हो गयी। किसी प्रकार अपने और पुत्र के निर्वाह लायक आय रह गयी थी। अनेक बार जब वह अकेली होती, तब स्वयं से कहा करती थी-मेरी जीभ बहुत चटोरी हो गयी है, इसे बहुत समझाती हूँ कि अब चार-छः साग मिलने के दिन गये। अनेक प्रकार कीमिठाइयाँ अब दुर्लभ हैं। पकवानों का स्मरण करने से कोई लाभ नहीं। फिर भी मेरी जीभ मानती ही नहीं। मेरा बेटा रूखी-सूखी खाकर पेट भर लेता है। किन्तु दो-तीन साग बनाये बिना मेरा पेट नहीं भरता।"

रानाडे ने यह घटना सुना कर कहा किपड़ोस में रहने के कारण उस महिला की बातें मैंने अनेक बार सुनी थीं। मैंने तभी से नियम बना लिया कि जीभ जिस पदार्थ को पसन्द करे, उसे बहुत ही थोड़ा खाना। जीभ के वश में न होना। यदि उस महिला के समान दुःख न भोगना हो तो जीभ को वश में रखना चाहिए।"  

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