नई पुस्तकें >> प्रेरक कहानियाँ प्रेरक कहानियाँडॉ. ओम प्रकाश विश्वकर्मा
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सभी आयुवर्ग के पाठकों के लिये प्रेरक एवं मार्गदर्शक कहानियों का अनुपम संग्रह
शास्त्रज्ञान का प्रभाव
महाराज भोज के नगर में एक विद्वान ब्राह्मण रहते थे। वे कभी याचना नहीं करते थे तो फिर बिना माँगे उनको द्रव्य कहाँ से मिलता? दरिद्रता महा-दुःखदायिनी होती है। दरिद्रता से व्याकुल होकर ब्राह्मण ने राजभवन में चोरी करने का निश्चय किया और रात्रि में राजभवन में प्रविष्ट होने में वह सफल भी हो गये। वहाँ सब सेवक सेविकाएँ निश्चिन्त सो रही थीं। स्वर्ण, रल आदि इधर-उधर पड़े थे। ब्राह्मण चाहे जो उठा लेते, कोई रोकने वाला नहीं था।
परन्तु एक था रोकने वाला। ब्राह्मण जब भी किसी वस्तु को लेने के लिए हाथ बढ़ाते, वह उन्हें उसी क्षण रोक देता था। वह था उनका शास्त्रज्ञान। जो कहता था. "स्वर्णचोर नरकगामी होता है। शास्त्रकार कहते हैं, स्वर्ण की चोरी पाँच महापापों में से एक है।"
ब्राह्मण जो कुछ भी लेना चाहते उनका शास्त्रज्ञान उन्हें उसके पाप का स्मरण करा देता और वह ठिठक जाते। इस प्रकार रात्रि व्यतीत हो गयी। सेवक जागने लगे। पकड़े जाने के भय से ब्राह्मण राजा के पलंग के नीचे जाकर छिप गये।
राजा का जागने का समय हुआ। उनको जगाने के लिए रानियाँ और सेवक आदि सुसज्जित होकर तथा हाथ में जल-कलश लेकर उपस्थित हो गये। राजा भोज जगे और उन्होंने सारा ताम-झाम देखा। आनन्दोल्लास में उनके मुख से एक श्लोक के तीन चरण निकल गये, जिसका अभिप्राय था "अहा, क्या सुन्दर वातावरण है, चित्त को हरने वाली युवतियाँ, अनुकूल सेवक, अच्छे बन्धुबान्धव, अच्छे नौकर-चाकर, अश्वशाला में कितने सुन्दर अश्व बंधे हैं.."इतना बोल कर महाराज रुक गये तो उनकी शय्या के नीचे छिपे विद्वान ब्राह्मण से रहा नहीं गया। उन्होंने श्लोक का चौथा चरण पूरा करते हए कहा
"नेत्र बन्द हो जाने पर यह सब वैभव कुछ नहीं रहता।" महाराज यह सुन कर चौंक उठे। उनकी आज्ञा से ब्राह्मण को शय्या के नीचेसे निकलना पड़ा। पूछने पर उन्होंने राजभवन में आने का कारण बताया।
राजा भोज ने पूछा, "आपने चोरी क्यों नहीं की?"ब्राह्मण ने कहा" राजन्! मेरा शास्त्रज्ञान मुझे रोकता रहा। उसीने मेरी रक्षा की।" राजाभोज प्रसन्न हुए और ब्राह्मण को प्रचुर धन देकर विदा किया।
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