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सूक्ति प्रकाश

डॉ. ओम प्रकाश विश्वकर्मा

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2020
पृष्ठ :160
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 15420
आईएसबीएन :978-1-61301-658-9

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1000 सूक्तियों का अनुपम संग्रह


पैसा पाना ही आदमी का सब काम नहीं है, दयालुता जीवन-कर्म का कीमती भाग है।
- जानसन
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कोई भी आदमी अपनी सजीली-छबीली पोशाक के कारण सिवाय मूरों और स्त्रियों के और किसी के द्वारा सम्मानित नहीं होता।
- सर वाल्टर रेले
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अच्छी पोशाक की परिपूर्णता तीन बातों के मिलन से है-उसका आराम-देह, सस्ता और सुरुचिपूर्ण होना।
- बोवी
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वह सर्वोत्तम पोशाक में है जिसकी पोशाक कोई नहीं देखता।
- द्रोलप
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भाषा विचार की पोशाक है; और रुचि के आधुनिक नियमानुसार वह पोशाक सबसे अच्छी है जो पहनने वाले पर से कम से कम ध्यान खींचती है।
- लैली स्टीफिन्स
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खाओ अपनी पसन्द का, पहिनों दूसरों की पसन्द का।     
- फ्रेंकलिन
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प्रकृति और विवेक हमेशा एक ही बात कहते हैं।
- जुवैनल
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पर्वतों में पानी नहीं रहता, महापुरुषों के मन में प्रतिशोध की भावना नहीं रहती।
- चीनी सूक्ति
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ज्ञान और सब तरह की चतुरता से क्या लाभ? अन्दर जो आत्मा है उसका ही प्रभाव सर्वोपरि है।
- तिरुवल्लुवर
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प्रभुता को सब कोई भजते हैं, प्रभु को कोई नहीं भजता। प्रभु को भजे तो प्रभुता चेरी हो जाय।
- कबीर
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दुनिया में ऐसा कोई नहीं जन्मा जिसे प्रभुता पाकर गर्व न हुआ हो।
- रामचरित मानस
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जंग खा-खाकर खत्म होने की अपेक्षा घिस-घिस कर मिटना अच्छा।
- बिशप कम्बरलेंड
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मनुष्य की अपेक्षा तो भेड़-बकरे भी अधिक सचेत होते हैं, क्योंकि वे गड़ेरिये की आवाज सुनकर खाना-पीना भी छोड़कर उसकी ओर तुरन्त दौड़ पड़ते हैं; दूसरी ओर मनुष्य इतने लापरवाह हैं कि ईश्वर की ओर जाने की बांग सुनकर भी उधर न जाकर आहार-विहार में ही तल्लीन रहते हैं।
- हुसेन बसराई
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योग माने कर्म करने का कौशल।
- गीता
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मांग, और वह तुझे अवश्य दिया जायगा; खोज, और तू वह अवश्य पायेगा; खटखटा, तेरे लिये दरवाजा अवश्य खुलेगा।
- बाइबिल.
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बेवकूफ चिड़िया दाना तो देखती है, फंदा नहीं।
- अफगान कहावत
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सबसे ऊँची 'बोली बोलने वाले के सामने अडिग रह सकने का सद्गुण विरले लोगों में ही होता है।
- वाशिंगटन
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अगर कोई आदमी अपने आप से नहीं पूछता 'क्या करूँ? क्या करूँ?' तो सचमुच मैं नहीं जानता कि ऐसे आदमी का क्या करूँ?
- कनफ्यूशियस
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किसी के गुणों की प्रशंसा करने में अपना समय नष्ट न करो, उसके गुणों को अपनाने का प्रयत्न करो।
- कार्ल मार्क्स
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प्रशंसा विभिन्न व्यक्तियों पर विभिन्न प्रभाव डालती है, वह विवेकी को नम्र बनाती है और मूर्ख को और भी अहंकारी बनाकर उसके दुर्बल मन को मदहोश कर देती है।
- फैलथम
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प्रशंसा के भूखे यह साबित कर देते हैं कि वे योग्यता में कंगले हैं।     
-  प्लुटार्क
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स्वार्थ सिद्धि के लिये प्रशंसा करना दाता के हाथ स्वाभिमान को बेच देना है।
- हरिभाऊ उपाध्याय
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