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चेतना के सप्त स्वर

डॉ. ओम प्रकाश विश्वकर्मा

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2020
पृष्ठ :156
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 15414
आईएसबीएन :978-1-61301-678-7

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डॉ. ओ३म् प्रकाश विश्वकर्मा की भार्गदर्शक कविताएँ

हे माधवी ! हे वारुणी !


हे माधवी! हे वारुणी!
हे सफल गृहस्थ विदारिणी।
मद मस्त कर अपने भगत को,
नीच, कीच-बीच पछारिणी।

सम्मान मान निवारिणी,
हे माधवी! हे वारुणी।।१

हे सुरा रानी! यश तुम्हारा
जो नर बिचारे गा रहे।
पहले लगा तुमको गले
फिर अगले दिन पछता रहे।।

मधुशाला मध्य विहारिणी,
हे माधवी! हे वारुणी।।२

पान कर तुमको प्रिये,
कुछ काल चूहा शेर होता।
जब उतरती कृपा तेरी,
जेब खाली और रोता।।

सुवेष भेष विगारणी,
हे माधवी! हे वारुणी।।३

छण में बनाती तू यहां,

पर, रंक को राजा।
जब उतरता है असर,
बज गया होता है बाजा।।

हे विविध रूप धारिणी।

हे माधवी! हे वारुणी।।४

मद्य, मदिरा, माधवी, दारू,
सुरा तेरे नाम है।
सिन्धु मंथन में नहीं,
अब ठेका तेरा धाम है।।

हर ओर करे प्रतारिणी।
हे माधवी! हे वारुणी।।५

नित्य तेरी शरण जो लें,
मुक्ति उनकी शीघ्र होती।
रिक्त होती सब गिरस्ती,
पत्नी विधवा शीघ्र होती।।

बालक अनाथ पुकारिणी,
हे माधवी! हे वारुणी।।६

(व्यंग्य)


* *

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