नई पुस्तकें >> चेतना के सप्त स्वर चेतना के सप्त स्वरडॉ. ओम प्रकाश विश्वकर्मा
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डॉ. ओ३म् प्रकाश विश्वकर्मा की भार्गदर्शक कविताएँ
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भारतीय कवितायें
हे माधवी ! हे वारुणी !
हे माधवी! हे वारुणी!
हे सफल गृहस्थ विदारिणी।
मद मस्त कर अपने भगत को,
नीच, कीच-बीच पछारिणी।
सम्मान मान निवारिणी,
हे माधवी! हे वारुणी।।१
हे सुरा रानी! यश तुम्हारा
जो नर बिचारे गा रहे।
पहले लगा तुमको गले
फिर अगले दिन पछता रहे।।
मधुशाला मध्य विहारिणी,
हे माधवी! हे वारुणी।।२
पान कर तुमको प्रिये,
कुछ काल चूहा शेर होता।
जब उतरती कृपा तेरी,
जेब खाली और रोता।।
सुवेष भेष विगारणी,
हे माधवी! हे वारुणी।।३
छण में बनाती तू यहां,
पर, रंक को राजा।
जब उतरता है असर,
बज गया होता है बाजा।।
हे विविध रूप धारिणी।
हे माधवी! हे वारुणी।।४
मद्य, मदिरा, माधवी, दारू,
सुरा तेरे नाम है।
सिन्धु मंथन में नहीं,
अब ठेका तेरा धाम है।।
हर ओर करे प्रतारिणी।
हे माधवी! हे वारुणी।।५
नित्य तेरी शरण जो लें,
मुक्ति उनकी शीघ्र होती।
रिक्त होती सब गिरस्ती,
पत्नी विधवा शीघ्र होती।।
बालक अनाथ पुकारिणी,
हे माधवी! हे वारुणी।।६
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