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चेतना के सप्त स्वर
चेतना के सप्त स्वर
प्रकाशक :
भारतीय साहित्य संग्रह |
प्रकाशित वर्ष : 2020 |
पृष्ठ :156
मुखपृष्ठ :
ई-पुस्तक
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पुस्तक क्रमांक : 15414
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आईएसबीएन :978-1-61301-678-7 |
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डॉ. ओ३म् प्रकाश विश्वकर्मा की भार्गदर्शक कविताएँ
असली प्रजातन्त्र
प्रिय बन्धुओं! हर्ष का विषय है कि आज हम स्वतन्त्र हैं।
जब २६ जनवरी आती है, तब मनाते अपना गणतन्त्र हैं।
हम सड़क के बीच चलें - दायें या बाये चल सकते हैं।
आज हम सभा में बोल सकते हैं।
सबके सामने अपना हृदय खोल सकते हैं।
जनता के समक्ष अपने आप को तौल सकते हैं।
भारत में प्रजा तन्त्र का अमृत घोल सकते हैं।
इसी लिये तो हम स्वतन्त्र हैं।
मनमाना बोल सकते हैं - हर जहर घोल सकते हैं।
ऊपर की कमाई से स्वीस बैंक में खाता भी खोल सकते हैं।
सत्ता तक जाना हमारा मूल मंत्र है।
हर तरह धन कमाने को आज हम स्वतंन्त्र हैं।
क्योंकि यही लोक तन्त्र है।
दृश्य छोटा सा प्रस्तुत है सुनो-मन करे तो गुनो।
तुम भी स्वतंत्र हो, मन आये तो सिर धुनो।
एक बार एक जंगल में, एक गधा एक घोड़े पर सवार था।
जंगल के सारे जानवरों को उस पर प्यार था।
इसीलिये तो वह घोड़े पर सवार था।
लकड़बग्घा-शेर जैसा उसका यार था।
गधा था या कोई होनहार था।
एक तोते ने आश्चर्य में आकर लोमड़ी से पूँछा?
बुआ, इस गधे के पास क्या कोई मन्त्र है?
लोमड़ी बोली पागल! यही तो असली प्रजातन्त्र है।
बन्धुओं हर्ष का विषय है, कि आज हम स्वतन्त्र हैं।।
(व्यंग्य)
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पुस्तक का नाम
चेतना के सप्त स्वर
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