नई पुस्तकें >> चेतना के सप्त स्वर चेतना के सप्त स्वरडॉ. ओम प्रकाश विश्वकर्मा
|
0 5 पाठक हैं |
डॉ. ओ३म् प्रकाश विश्वकर्मा की भार्गदर्शक कविताएँ
|
भारतीय कवितायें
दर्द में मेरी खुशी दर्द में त्योहार
जब बुलाओगे तभी, आऊँगा तेरे द्वार।
अब दर्द में मेरी खुशी है, दर्द में त्योहार।।
पहले बनाते चित्र फिर, उसे फाड़ते हो।
पास तो आते नहीं हो, दूर से ही ताड़ते हो।।
मोह का कर स्मरण, की हार खुद स्वीकार।
अब दर्द में मेरी खुशी है, दर्द में त्योहार।
स्वार्थ सिद्धि को ही, तुम तो मानते व्यापार।
बीती यादों की थाती से, कर लेंगे जीवन पार ।।
धन में ही तुमको दिखता है, सारे जीवन का सार।
अब दर्द ही मेरी खुशी है, दर्द में त्योहार।।
नव उर्मियाँ जब हो तरंगित, और मिले नव दृष्टियां।
चित्त के उपवन यदि फिर हो, नृत्य आतुर तितलियां।।
स्वप्नवत उसको समझना, जब तक न उतरे ज्वार।
अब दर्द ही मेरी खुशी, है दर्द में त्योहार ।।
भावना की भूमि पर, यदि भाव मम आये कभी।
कर्म की इस पृष्ठ भू पर, मुखरित ऋचायें हो सभी।।
अहं ज्वालामुखी लावा, जब तुमको लगे बेकार।
उस समय प्रियतम तुम्हारे, आऊँगा मैं द्वार ।।
'प्रकाश' से जीवन भरे हो जाय बेड़ा पार।
दर्द में मेरी खुशी है दर्द में त्योहार ।।
* *
|