नई पुस्तकें >> चेतना के सप्त स्वर चेतना के सप्त स्वरडॉ. ओम प्रकाश विश्वकर्मा
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डॉ. ओ३म् प्रकाश विश्वकर्मा की भार्गदर्शक कविताएँ
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भारतीय कवितायें
गर्म तवे सा तपना है
सभी सफलता के हैं साथी,
खुशियों में हाथ बंटायेगें।
यदि असफल हो गये कभी,
तो कदमों से ठुकरायेंगे।।१
अपना तेरा नहीं है कुछ भी,
अपना तेरा सपना है।
नाता जोड़ मानना अपना,
गर्म तवे सा तपना है।।२
माता-पिता, बन्धु, सुत पत्नी,
सभी गणित के पक्के हैं।
हुआ निछावर तन मन सारा,
तब हम बने उचक्के हैं।।३
यदि सफल जगतं में होना है
नहीं बैठ कर रोना है।
मेहनत को अपनाना है,
आलस्य को दूर भगाना है।।४
नई ज्योति फिर आयेगी,
सब को गले लगायेगी।
रिस्ते नाते अपने होंगे,
सच्चे सारे सपने होंगे।।५
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