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नई पुस्तकें >> चेतना के सप्त स्वर चेतना के सप्त स्वरडॉ. ओम प्रकाश विश्वकर्मा
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डॉ. ओ३म् प्रकाश विश्वकर्मा की भार्गदर्शक कविताएँ
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भारतीय कवितायें
मैं बराबर घट रहा हूँ
जन्म से आज तक,
मैं बराबर घट रहा हूँ।
एक होकर भी अनेकों भाग में,
मैं बराबर बट रहा हूँ।।
सूर्य की पहली किरण के साथ ही,
मैं निकलता हूँ जहां को जीतने को।
हर रात को जब जोड़ता हूँ खाता-बही,
पा रहा हूँ कि स्वयं मैं ही लुट रहा हूँ।।
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