नई पुस्तकें >> चेतना के सप्त स्वर चेतना के सप्त स्वरडॉ. ओम प्रकाश विश्वकर्मा
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डॉ. ओ३म् प्रकाश विश्वकर्मा की भार्गदर्शक कविताएँ
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भारतीय कवितायें
अब तक हमने जो भी देखा
अब तक हमने जो भी देखा,
उसका कौन बनाये लेखा।
जितनी दालें देखी जग में,
हमने सब में काला देखा ।।
ढोगी पंण्डित के हाथों में,
हमने लम्बा माला देखा।
सतरंगी फूलों का रंग भी,
हमने पड़ता काला देखा।।
अर्थशास्त्र के कद से ऊँचा,
हमने शेयर घोटाला देखा।
शीर्ष पदों के नेताओं का,
हमने मुंह भी काला देखा।।
(व्यंग्य)
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