नई पुस्तकें >> चेतना के सप्त स्वर चेतना के सप्त स्वरडॉ. ओम प्रकाश विश्वकर्मा
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डॉ. ओ३म् प्रकाश विश्वकर्मा की भार्गदर्शक कविताएँ
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भारतीय कवितायें
कोई ईसा अब सूली चढ़ेगा नहीं
भारत माता का तन बिन कफन जल रहा,
ये गगन जल रहा - ये पवन जल रहा।
लाखों माली पड़े जहाँ, पर चमन जल रहा,
मेहरबानों जरा - भर नजर देख लो।।
भारत माता का तन - बिन कफन जल रहा।१
उजड़े गुलशन पड़े बागवां बेखबर,
तुम वहां जल रहे मैं यहां जल रहा।
ऊँचे महलों से “श्रीमन्त" झांके जरा,
स्वार्थ की आग में, फिर वतन जल रहा।।
भारत माता का तन - बिन कफन जल रहा।२
चन्द्रशेखर - भगत और राजगुरु का,
रक्त खामोश हमेशा रहेगा नहीं
सह चुके हैं बहुत हम मसीही
तेरी कोई ईसा अब सूली चढ़ेगा
नहीं क्रांति के सूत्र का फिर सृजन चल रहा
भारत माता का तन बिन कफन जल रहा।३
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