नई पुस्तकें >> चेतना के सप्त स्वर चेतना के सप्त स्वरडॉ. ओम प्रकाश विश्वकर्मा
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डॉ. ओ३म् प्रकाश विश्वकर्मा की भार्गदर्शक कविताएँ
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भारतीय कवितायें
प्यास
मत इतनी प्यास बढ़ाओ प्रिये,
कि सागर भी अधूरा रह जाये।
मत ऊँची उड़ान भरो इतनी
आकाश अधूरा रह जाये।।१
यहां आग से आग न बुझती कभी,
वह और प्रज्ज्वलित हो जाये।
मत इतनी आस लगाओ तुम,
कि उपहास जगत में हो जाये।।२
नहि सांस का भी विश्वास यहां,
कब सांस अधूरी रह जाये।
संसार के सार को चित्त धरो,
व्यवहार न अधूरा रह जाये।।३
अधिकार में भार निहित है परोक्ष,
अभिमान का मान सदा न रहे।
धर्मी-कर्मी और वीर वही
कर्तव्य कमान गहे जो रहे ।।४
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