नई पुस्तकें >> चेतना के सप्त स्वर चेतना के सप्त स्वरडॉ. ओम प्रकाश विश्वकर्मा
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डॉ. ओ३म् प्रकाश विश्वकर्मा की भार्गदर्शक कविताएँ
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भारतीय कवितायें
तुम मुझको अपना लेना
हे माँझी! मेरी जीवन नौका के,
यह विनय हमारी सुन लेना।
मझधार पवन के झोंकों में,
तुम मुझको अपना लेना।।१
दे दो कला तैरने की,
हँसते-हँसते बेड़ा पार करूँ।
सागर की लहराती लहरों से,
चुम्बन लेता नहीं डरूँ।।
पहुचूँ सागर पार जहाँ,
नीलांचल ओढ़े प्रियतम हो।
प्रियतम से मिलकर धन्य बनूँ,
अनुपम 'प्रकाश' के दर्शन हों।।३
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