नई पुस्तकें >> चेतना के सप्त स्वर चेतना के सप्त स्वरडॉ. ओम प्रकाश विश्वकर्मा
|
0 5 पाठक हैं |
डॉ. ओ३म् प्रकाश विश्वकर्मा की भार्गदर्शक कविताएँ
|
भारतीय कवितायें
दीपावली
जड़ वर्तिका घृत-भीच भीच कर,
चेतन हो ज्योर्तिमय होती।
पावक समेट सर्वस्व फूंक,
घन तिमिर से जूझ बनी. ज्योती।।१
करना केवल इतना हमको,
उस ज्योति से ज्योति जलाना है।
अंधकार सभी मिट जाय धरा का,
ऐसी मालिका सजाना है।।२
जब ज्योति से ज्योति जले प्रति उर में,
तब साकार दिवाली हो।
जब राग द्वेष की अग्नि बुझे,
तब स्वीकार दिवाली हो।।
* *
|