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चश्में बदल जाते हैं

आशापूर्णा देवी

प्रकाशक : सन्मार्ग प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2000
पृष्ठ :103
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 15408
आईएसबीएन :0000000000

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बाप बेटा को समझाना चाहता है कि युग बदल गया है-तुम्हारा चश्मा बदलना जरूरी है। वृद्ध पिता के चेहरे पर हँसी बिखर जाती है।

9

अचानक ही आज एक दैवी घटना घट गई।

सुबह सोमप्रकाश जब अखबार की वही घिसी-पिटी खबरों से ऊबकर अखबार जल्दी से पढ़ने के बाद तह कर रहे थे, अचानक तूफान की तरह वही छोटा इन्सान आकर उनसे चिपट गया-'मामदू मामदू! आज बहुत मजा है। बहुत मजा।'

'क्यों रें, क्या हुआ? बाबू सोना, चाँद का टुकड़ा...'

'बहुत मज़ा। जानते हो न आज इतवार है। थोड़ी देर पहले न माँमोनी अपने सुन्दर-सुन्दर बालों को छोटे-छोटे करके कटवाने के लिए ब्यूटी सैलून या न जानें कहीं गई है। कह रही थी कि लौटने में खूब देर होगी और मैं न बैठे-बैठे जितना जी चाहे तस्वीरें बनाऊँ। और बापी से कह गई कि मुझे कमरे में रोक रखे। सो तभी न...ही-ही-ही...बापी के दफ्तर के एक दोस्त न, आ धमके। बस! बापी जल्दी से नीचे ड्राइंगरूम में चले गये। अवनीदा से चाय बनाने कहा ये लाओ, वो लाओ भी कहा। और पता है मेरी तरफ तो मुड़कर भी नहीं देखा।...मुझे ड्राइंग करने में मजा नहीं आ रहा था, मैं तुम्हारे पास भाग आया हूँ। ही-ही...कैसा माँमोनी को बुद्ध बनाया है। लाओ, सारी टॉफी दो। मैं दिखा-दिखाकर खाऊँगा।' कहकर यथास्थान से टाँफियाँ निकालकर उनके कागज उतारने लगा।

सोमप्रकाश उस अलौकिक प्रकाश से दमकते चेहरे को निहारने लगे। उन्होंने एक साँस छोड़ते हुए सोचा-'माँ होकर जानबूझकर इस प्रकाश को बुझाए रहती है।'

काफी देर तक उसे अपनी इच्छा का काम करने दिया फिर पूछा-'और तुम्हारी अम्मा कहाँ है?'

'अम्मा?' फूल जैसे दोनों हाथ हिलाकर बोला-'और कहीं उसी सड़ी रसोई में। आज इतवार है न, जितना हो सकेगा खाना बनाएगी। जाने दो...तुम्हारे साथ गप..'

'कौन सी गप करोगे?'

'कोई भी-जो मर्जी। जानते हो मामदू...' फिर अचानक हमेशा की आदत के अनुसार होठों पर अँगुली रखकर फुसफुसाकर बोला-'हमलोग इस घर से चले जायेंगे।...'

सोमप्रकाश सिहर उठे-'क्या कहा? ऐं?'

'यही तो कहा। हमलोग इस घर से चले जायेंगे। मैं, बापी और माँमोनी।' असतर्क होते ही गले ही आवाज स्पष्ट हो गई-'और किसी को साथ नहीं ले जायेंगे।'

बड़ी मुश्किल से सोमप्रकाश ने जानना चाहा-'कहाँ जाओगे?'

'वाह! हमारा एक बहुत सुन्दर फ्लैट खरीदा नहीं गया है क्या?...वह न इतना सुन्दर है...तुम सोच ही नहीं सकते हो। चारों तरफ खुली हवा और न जाने क्या क्या। ऐसा सड़ा मोहल्ला नहीं है।'

सोमप्रकाश की समझ में आया कि उसकी आज की 'गप' यही है। यही खबर सुनाने के लिए वह छटपटा रहा था। आज ऐसा जबरदस्त मौक़ा पाते ही...उसके ढेर सारे नामों में से दुलार का एक नाम है 'किंग'। स्कूली नाम का अर्द्धांश। माँ-बाप सदैव इसी नाम से पुकारते हैं।

इस समय कोई नहीं तीक्ष्ण तीव्र स्वरों में नहीं बुला रहा है-'किंग। काम करते-करते तुम बातें करने चले गये हो? चले आओ-जल्दी।'

कमरे का पर्दा लटक नहीं था, हटा हुआ था। किंग ने उस निश्चिन्तता की ओर देखा फिर खाट पर चढ़ बैठा और घुटने मोड़कर आसन बनाकर बैठते हुए बोला-'अच्छा मामदू खुली हवा खूब अच्छी चीज होती है-है न?'

'हूँ।'  

'इसीलिए तो हर दिन रात को माँमोनी बापी के साथ झगड़ा करती थी। कहती थी, मुझसे अब यह घुटन बरदाश्त नहीं हो रहा है। मुझे खुली हवा चाहिए। हीं-ही...सोचती थी मैं सो रहा हूँ। मैं सोता ही नहीं था लेकिन ऐसे लेटा रहता था जैसे सो रहा हूँ। अँगुली तक नहीं हिलाता था।...और बापी कहते थे-'कैसे करूँ तुम्हीं बताओ न?' और तब न माँमोनी अँग्रेजी में ऐसी गाली देती थी...बाप रे। मैं अंग्रेजी तो समझता नहीं हूँ...फिर भी न, यह समझ जाता था कि डाँट रही है। खू...ब डाँटती थी।'

सोमप्रकाश आहिस्ता से बोले-'तुमलोग चले जाओगे तो हमलोग कैसे रह सकेंगे?'

किंग समझदारों की तरह सिर हिलाकर बोला-'यही तो। मुझे भी तो इसी बात की चिन्ता है। पर माँमोनी बापी की बात सुने तब न? कहती है, क्यों जेठू हैं, जेठूमाँ हैं...'अच्छा मामदू 'फाँसी का फन्दा' माने क्या है?'

'पता नहीं बेटा।'

'ए माँ। तुम नहीं जानते हो? माँमोनी तो हरदम ही कहती है हम क्यों फाँसी का फन्दा पहनें? ये तो बंगला में है फिर भी तुम इसका माने नहीं जानते हो?'

किंग हताशभाव से बोला-'जाने दो, बड़ा हो जाऊँगा तो जान जाऊँगा सुनो मामदू, तुम न किसी से कह न बैठना कि मैंने तुमको यह सब बताया है। माँमोनी को पता चल गया तो माँमोनी मुझे 'खतम' कर डालेगी। और बापी भी, आँखें गोल-गोल करके ठाँय-ठाँय जमा देंगे।'

सोमप्रकाश ने आहिस्ता से पूछा-'तुमने वह मकान देखा है?'

'मैं? मैं कैसे देखूँगा? मुझे क्या कभी ले गये हैं? एक दिन बापी ने कहा था, किंग भी चले न। तो माँमोनी ने जानते हो क्या कहा?

'न:। इसे ले गये तो सारा राजू खुल जायेगा।' अच्छा मामदू राज़ खुल जाने के माने क्या हैं?'

'क्या मालूम बेटा। '

'धत्! तुम इतने बड़े एक बुड्ढे हो...तुम भी मेरी तरह कुछ नहीं जानते हो।...माँमोनी तो कितनी बातें जानती है।'

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