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चश्में बदल जाते हैं

आशापूर्णा देवी

प्रकाशक : सन्मार्ग प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2000
पृष्ठ :103
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 15408
आईएसबीएन :0000000000

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बाप बेटा को समझाना चाहता है कि युग बदल गया है-तुम्हारा चश्मा बदलना जरूरी है। वृद्ध पिता के चेहरे पर हँसी बिखर जाती है।

31

पड़ोसियों के हाय-हाय करते-करते उस फ्लैट के तीन वाशिन्दों में से दूसरे कर्मस्थल से वापस लौटे-इण्डियन एयर लाइन्स के इन्जीनियर मिस्टर, ए.पी. सान्याल। वे यद्यपि मूर्च्छित नहीं हुए, केवल पुलिस को फोन करने के बाद चप्पा-चप्पा छानने लगे तीसरे प्राणी को तलाशने में। किंशुक सान्याल। कहाँ है वह?' आनन्द 'मंगल' शिशु विद्यालय का सुन्दर चंचल वही छोटा किंशुक। उस दिन भी शाम को तीन बजे उसे स्कूल-बस से कूदकर उतरते देखा गया था। दिखाई पड़ी थी उसकी आया पार्वती सरदार भी-यथास्थान खड़ी प्रतीक्षारत...

लड़का 'पार्वतीदी' कहकर अपना बैग, वॉटर बॉटल सब उसे देकर उछलते हुए फ्लैट के कम्पाउण्ड में घुस आया था-यह दृश्य भी बहुतों ने देखा था।

इसके बाद कौन किसकी खबर रखता है?

और पार्वती सरदार?

उसे ही कौन ढूँढ़ने जा रहा है?

उसको तो फ्लैट के भीतर ही रहना था।

पर नहीं! वह फ्लैट में नहीं थी। उसकी अपनी कोई चीज़ भी नहीं थी। वह नहीं मिली। और वह सात साल का लड़का? वह भी क्या घर के सारे सामान के साथ चोरी चला गया?

पर सान्याल दम्पत्ति का अहोभाग्य कि वह चोरी नहीं हो गया था। वह मिला। बेडरूम के बगल वाले छोटे से बॉक्सरूम में-गहन निद्रा में डूबा फर्श पर पड़ा था।

शरीर पर केवलमात्र एक जाँघिया और बनियान। स्कूल से वापस लौटकर घर में पहनने की पोशा में।

लेकिन नींद से बेहोश बेहाल-क्या यह चिरनिद्रा है?

नहीं-अभी भी यह बात घोषित नहीं हुई है। वह इस समय पी.जी. के एक बेड पर चेतना और अवचेतना की दशा में पड़ा था। परीक्षण से पता चला है कि अत्याधिक नींद की दवा की प्रतिक्रिया है। अनुमान लगाया जा रहा है कि डकैती की सुविधार्थ शिशु के खाने में नींद की दवा डालकर उसे खिलाया गया होगा। उद्देश्य काम आराम से करने का था, बच्चे को मारने का नहीं। अधिक मात्रा में प्रयोग करने से यह मुसीबत आ गई है।

हालाँकि ऐसा पुलिस का अनुमान है। रहस्य-उद्घाटन के लिए उसे तहकीकात करना पड़ेगा। लापता पार्वती सरदार अभी मिली नहीं है। पुलिस यह भी सोच रही है कि या तो पार्वती ही डकैती की नायिका है या वह भी डकैती की शिकार।

*                             *                         *

आजकल अपराध जगत की कहानियाँ जैसे उपन्यासों और कहानियों में पढ़ने को मिलती हैं और जो कभी-कभी धारावाहिक उपन्यास का रूप धर लेता है-अभागे सान्याल दम्पत्ति के फ्लैट की कहानी भी इसी तरह से परिवेशित हुई थी।

वृद्ध सान्याल दम्पत्ति उसी परिवेशन की चतुराई के शिकार हो गये थे और इसी कारण श्रीमती सुकुमारी सान्याल उसी पी.जी. में एक दूसरे कमरे में मृत्यु के साथ पंजा लड़ रही थीं।

उतने बड़े इलाके में विस्तृत पता लगने का प्रश्न कहाँ उठता है। किस गेट से कब कौन आता है, जाता है, किस सीढ़ी से कब उतरता-चढ़ता है-कौन जान सकता है?

कहना पड़ेगा किस्मत यही चाहती थी।

रूबी का एक भाई लिफ्ट से उतरकर सामने एक जने को देखकर ठिठक कर रुक गया। बोला-'अवनी हो न?'

अवनी नमस्ते कर बोला-'जी हाँ दादाबाबू।'

'तुम लोगों को कैसे खबर मिली? इन लोगों ने तो कहा कि मौसाजी की तबियत खराब है, और न बिगड़ जाए इस डर से उन्हें कुछ बताया नहीं है।'

अवनी धीरे से बोला-'जी खबर तो अखबार के ज़रिए हवा के वेग से उड़ती है।'

'ओ हाँ...वह तो है। तो तुम अकेले आए हो?'

'जी नहीं, अकेले तो नहीं आया हूँ। बाबू और माँ भी आए हैं।'

'ईश! वे लोग भी आए हैं? मौसाजी भी?'

'आए बगैर उपाय भी तो नहीं था। तो ख़ैर, खोकाने सोनाबाबू अब कैसे हैं?'

'ठीक है माने थोड़ा-थोड़ा। तो वे लोग कहाँ हैं? मौसा जी, मौसीजी?' अपनी अपनी पॉलिसी मुताबिक 'धीरे धीरे रहस्योदघाटन करो' बोला-'मौसाजी अपने बेड पर-अभी होश नहीं आया है। और मौसा जी वहीं हैं-'

अतएव मौसीजी के बेड को घेर को आ खड़े हुए उनके बेटे, उनकी बहुएँ। परिचित डाक्टर से भी भेंट हुई और उन्हीं से सारा केस ज्ञात हुआ। उनमें से किसी एक ने विस्मित भाव से पूछा, सिर्फ इस खबर से ऐसा हो सकता है क्या? शायद प्रेशर हाई रहा हो, चेक नहीं किया गया था।

पर यह आलोचना ज़ोर से नहीं, दबी आवाज़ में। मृदु गुंजन में।

सोमप्रकाश के दोनों बहनोई आए थे शिशु रोगी का हाल जानने-उन्होंने सोमप्रकाश को धर दबोचा।

सोमप्रकाश ने शान्तभाव से कहा-'सही सही क्या हुआ यह तो मैं बता न सकूँगा-पता नहीं अचानक कैसे क्या हो गया?'

'डाक्टर क्या कह रहे हैं?'

'अभी तो कुछ नहीं कह रहे हैं।'

'बड़े लड़के ने आकर पुकारा-'माँ।'

'छोटे लड़के ने आकर पुकारा-'माँ।'

बहुओं ने बुलाया-'माँ।'

लगा सुकुमारी के होंठ हिले।

नर्स दौड़ी आई-'अभी डिस्टर्ब न करें। जब होश आ जाए...तब।'

वे लोग खामोश हो गये।

फिर भी सुकुमारी के होंठ हिलते ही रहे।

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