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चश्में बदल जाते हैं

आशापूर्णा देवी

प्रकाशक : सन्मार्ग प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2000
पृष्ठ :103
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 15408
आईएसबीएन :0000000000

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बाप बेटा को समझाना चाहता है कि युग बदल गया है-तुम्हारा चश्मा बदलना जरूरी है। वृद्ध पिता के चेहरे पर हँसी बिखर जाती है।

22

सहसा जोर डालते हुए सुनेत्रा बोल उठी-'तो यही करना तो बुद्धिमानों जैसा काम होगा पिताजी। ओमू बीमू भी तो यही कहते हैं। सब कुछ अव्यवस्थित करके चले जाने से तो अच्छा है कि समय रहते सारा ठीक-ठीक इन्तजाम कर डालना। मकान बेचकर जिसे जो मिलना है वह दे दो। और अपने दोनों की बाकी जिन्दगी की एक व्यवस्था...'

सहसा सोमप्रकाश वज्रकण्ठ से बोल उठे-'वही करूँगा।' बाप के कण्ठ स्वर से सुनेत्रा डर गई।

'जाऊँ, माँ शायद चाय लिए बैठी है।' वहाँ से सरक गई।  

लड़की के चले जाते ही सुकुमारी आकर आसमान से गिरीं-तो तुमने सूनी से क्या कहा है? जल्दी ही तुम ये मकान बेच दोगे?'

मुस्कुराकर सोमप्रकाश देखते हुए बोले-'हाँ! कहा तो है। पर उसने तो तुमको बताने के लिए मना किया था।'

'मुझे बताने से मना किया था? मजाक है? और इतने दिनों की तुम्हारी अकड़, तुम्हारी जिद्द-सब खत्म? वह भी मुझे कुछ न बताकर लड़की को पहले...'

'तुम्हें बताता तो अचानक सुनकर तुम अपसेट हो जातीं तुमको बताता...वक्त और मौका देखकर बताता।'

'लेकिन अचानक इरादा क्यों बदल डाला तुमने? ये मकान बेचकर, यह मोहल्ला छोड़कर जा सकोगे क्या?'

'तुम हमेशा से एक पागल हो। 'न कर सकने' जैसी कोई बात होती है क्या? बहुत लोग मोहल्ला छोड़कर जा चुके हैं, जा भी रहे हैं...'

सुकुमारी ने दीर्घश्वास त्याग कर कहा-'समझी। नरोत्तम का इस तरह से न बताकर चले जाने से तुमको बड़ा दुःख हुआ है। अब वह तो जिसकी जैसी अवस्था, वैसी उसकी व्यवस्था। लड़के तो कहते हैं जो आदमी खरीदे, उसके साथ एक व्यवस्था पक्की करनी होगी। हम दोनों के लिए एक छोटा सा मकान...'

सोमप्रकाश बोले-'ठीक है। हम दोनों के रहने की व्यवस्था की जिम्मेदारी मैं ही लूँगा। पर अगर मैं दूर, दूसरी जगह जाना चाहूँ तो चलोगी न मेरे साथ? और अगर जाने की इच्छा न हो तो लड़कों के पास रह सकती हो।'

'तुम्हें छोड़कर लड़कों के पास? ऐसी बेसिर-पैर की बातें तुम करते कैसे हो?'  

'अच्छा-ठीक है।' हँसकर सोमप्रकाश ने सुकुमारी का सिर पकड़कर हिलाते हुए कहा-'बूढे तो हो ही गये हैं-दोनों एक वृद्धाश्रम में चले जायेंगे।'

'वृद्धाश्रम? माने जिसे 'ओल्ड होम' कहते हैं?'

'अरे वाह! कौन कहता है सुकुमारी देवी के पास बुद्धि नहीं है?...आजकल एक से एक ओल्ड होम हो गये हैं।...घर गृहस्थी की जिम्मेदारी से मुक्त-आराम से रहो। 'वानप्रस्थ' धर्म का पालन भी हुआ और मार्डन युग के तरीक़े से रहना भी हुआ।'  

'तुमने ये सब देखा है?'

'देखने में समय कितना लगता है?'

'चित्र तो 'स्वर्गीय' है पर...', सुकुमारी को शायद यह 'चित्र' ज्यादा आकर्षित नहीं कर सका। थोड़ा सा चुप रहकर बोलीं-'तो अपने दोनों का इन्तजाम तो कर लोगे और उनका? उन दोनों का? महाराज और अवनी?'

'अरे, वह लोग क्या यहाँ पड़े रहेंगे? उन्हें मकान बेचने के पैसे से मोटी रक़म दे दूँगा-जाने कहूँगा। कुलदीप का तो घर है गाँव में, सब कुछ है। अवनी को भी एक साथ इतना रुपया मिल जायेगा तो सब कुछ हो जायेगा। पैसों के अभाववश शादी नहीं कर सका-बूढ़ा होने को आया। अब देख-सुनकर एक बालिकावधू जुगाड़ करके...', कहकर जोर से हँसने लगे सोमप्रकाश।

सुकुमारी अवाक हुई। ये आदमी हर वक्त हँस कैसे लेता है? उन्हें तो इस घर को छोड़कर जाने के नाम पर रोना आ रहा है। हर तरफ सूना-सूना जान पड़ रहा है।

सोमप्रकाश ने उनके चेहरे की तरफ देखकर कहा-'अरे अभी से कुछ उदास हो रही हो? क्या अभी चले जा रहे हैं? बहुत सारे पापड़ बेलने के बाद...और फिर बेचने के छह महीने बाद तक रह सकूँ-ऐसी शर्त रखूँगा अनुबन्ध-पत्र में।'

'ऐसा करोगे?'

'कह तो रहा हूँ न?'

सुकुमारी सुनकर थोड़ी आश्वस्त हुईं। छह महीने-कुछ कम समय नहीं होता है। धीरे-धीरे मन को भी तैयार कर लेंगी। और जब सोमप्रकाश कहीं और जाकर रहेंगे, सुकुमारी क्यों नहीं रह सकेंगी?  

तो, अब जाकर पिताजी को अक्ल आई है।'

बहुत दिनों बाद दोनों भाई दूरभाष के माध्यम से बात कर रहे थे। अब दोनों के ही मन के तार में सुखमय सुर झंकार रहा था।

पर दोनों ही कुछ विस्मित थे। अचानक ऐसी सुमति क्यों? गनीमत है कि असली कारण का इन्हें पता नहीं था। वरना सुस्वाद नीम के पत्ते के स्वाद में बदल गया होता।

'ओ:! दीदी के अनुरोध पर?'

अर्थात वे लोग कोई नहीं हैं। दीदी ही प्राणों से अधिक प्रिय हैं।

पर भीतर का राज़ अनजाना रहने के कारण, वे तन-बदन में आग लगने से बच गए।

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