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चश्में बदल जाते हैं

आशापूर्णा देवी

प्रकाशक : सन्मार्ग प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2000
पृष्ठ :103
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 15408
आईएसबीएन :0000000000

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बाप बेटा को समझाना चाहता है कि युग बदल गया है-तुम्हारा चश्मा बदलना जरूरी है। वृद्ध पिता के चेहरे पर हँसी बिखर जाती है।

21

उनकी कही बातों का सारार्थ यही था कि घर किराए पर देकर हावड़ा या कहीं और चले गये हैं नरोत्तम।...बड़ी लड़की जहाँ नौकरी करती थी, उसी स्कूल ने एक बहुत बड़ी बिल्डिंग बनाई है और उसी के पास टीचर्स क्वॉर्टर बनाया है-उसी में से बड़ी लड़की को एक क्वॉर्टर मिला है। वहीं कल शाम को मझली लड़की के साथ चले गए हैं। उसे भी वहीं कोई क्लर्की का काम मिल गया है।

और छोटी लड़की?

ओ माँ! सोमप्रकाश क्या कोई खबर नहीं जानते हैं? वह लड़की तो न जाने कब किसी से दोस्ती और प्रेम कर, रजिस्ट्री शादी करके दुर्गापुर चली गई है। आगे कहने लगीं सुकुमारी-'सुना है किराएदार बंगाली नहीं है। इस मोहल्ले में पहला गैरबंगाली परिवार घुसा। पता नहीं बाबा, आगे और क्या-क्या देखना पडे।'

अब शायद बंगला भाषा दिमाग में घुसी सोमप्रकाश के। बोले अनमने भाव से-'घुसे हैं तो क्या हुआ?'

इसके भी बहुत दिनों बाद फिर एक बार सोमप्रकाश को कहते सुना गया-'गैर बंगाली हैं तो क्या हुआ?' यह किस मौके पर?

वह तो इस मकान की मिल्कियत बदलने की बात पर बोले थे।

पर उस दिन सोमप्रकाश का मन बार-बार यही कहता रहा-'चला गया? मोहल्ला छोड़कर चला गया?'

उसी समय दूसरे मोहल्ले से आ धमकी सुनेत्रा। पुरानी बातों को भुलाकर, अकेली ही चली आई थी। याद नहीं आया कि इसी 'अकेले' आने के प्रसंग पर बाप को कितनी बातें सुनाई थीं। आकर बेझिझक कह भी सकी-'तुमसे एक सीक्रेट बात करनी है पिताजी इसीलिए बिना किसी से बताये चली आई हूँ। घर में कह आई हूँ 'काली मंदिर' जा रही हूँ...'

'क्यों? यह सब झूठ बोलने की क्या जरूरत थी?'

'तो क्या करती? यहाँ आ रही हूँ सुनेंगे तो हजारों कैफ़ियत माँगेंगे-हजारों सवाल पूछेंगे। माँ से भी नहीं बताया है क्यों आई हूँ। सिर्फ कहा कि बहुत दिनों से तुमलोगों को देखा नहीं था, याद आ रही थी। तो पिताजी, तुमको थोड़ा समय देना होगा मुझे। और मन लगाकर सारी बातें सुननी होगी।...माँ इस समय मेरे लिए नाश्ता बनाने में व्यस्त है-अभी तुम सुन लो।'

लड़की भाइयों की तरह सोमप्रकाश को आप नहीं कहती है।

खैर सोमप्रकाश से मन लगाकर सारी बातें सुनीं। फिर पूछा-'इस मोहल्ले में जमीन मकान के दाम बहुत बढ़ गये हैं, ये बात तुझे किसने बताई?'

'वाह! यह बात तो तुम्हारे दामाद ही रात-दिन कह रहे हैं-ओमू बीमू तो हर समय ही कहते हैं। कहते हैं, तुम्हारे उस समय का जमीन समेत बनाया मकान सिर्फ अस्सी हजार का था और आज इसकी क़ीमत तेरह-चौदह लाख है।'

सोमप्रकाश ज़रा हँसे। बोले-'शायद इससे भी ज्यादा। कभी-कभी लगता है इन्सान एक छटाँक भर जमीन के लिए ही पागल हुआ जा रहा है। खैर...फिर? तुझे असल में कहना क्या है?'

सुनेत्रा लज्जित हँसी हँसकर बोली-'पूछो मत पिताजी! तुम्हारे नाती जी को अब शौक़ हुआ है, अपने किसी दोस्त के साथ मिलकर डॉक्यूमेन्ट्री फिल्म बनाएगा। खुद ही वह लोग सब करेंगे-लेखक, परिचालक, आर्टिस्ट, प्रोड्यूसर। पर शुरु में लाख तीन लाख रुपया हाथ में रखे बगैर शुरु नहीं कर सकेगा न?'

इसके बाद और अधिक चेहरे पर लज्जाभाव लाकर बोली-'इसे लेकर इतना पगला गया है लड़का, पिताजी कि...। माँ का दिल है न? देखकर लगता है आसमान की तरह हाथ बढ़ाकर रुपया तोड़कर उसे दे दूँ...'

सोमप्रकाश हँसे-'यह सच है। माँ का दिल!...हाथ आसमान तक लम्बा किया जा सकता तो अच्छा ही हो सकता है-है न? तो अब सिनेमा को लेकर परहेज नहीं है तुझे?'

'ओ:, तुम उस बात का मजाक बना रहे हो? तब वही पुरानी मानसिकता थी...आँखें भी वैसा ही देखती थीं। आज देख रही हूँ इसमें कोई बुराई, निन्दा, अपयश नहीं है बल्कि है जय-जयकार। इसीलिए...'

इसके मतलब हुए सुनेत्रा का चश्मा जमीन आसमान बदल गया है।

हाँ। और इसीलिए सुनेत्रा अब आकाश की ओर हाथ बढ़ा रही है, अपने बेटे की इच्छापूर्ति के लिए प्रयास कर रही है।

सोमप्रकाश के इस घर के कुछ हिस्से की हक़दार सुनेत्रा भी तो है? कुछ क्यों, तीन हिस्से का एक हिस्सा...अब लड़के-लड़की का भेदभाव तो है नहीं। खैर, इस समय सुनेत्रा का प्रस्ताव था कि बाद में वह अपने हिस्से की रकम छोड़ देगी, ऐसा वह अभी लिखकर देने को तैयार है। और पिताजी अभी उसे कानूनन जो मिलना है वह दे दें।

'पर दुहाई है पिताजी! तुम्हारा दामाद न जान पाए। उदय ने कहा है, बाद में इसी रुपये को वह पाँच गुना बढ़ा डालेगा। तब...और पिताजी उसमें जो प्रतिभा है न...वह ऐसा जरूर कर सकेगा।'

सोमप्रकाश आहिस्ता-आहिस्ता बोले-'वह तो समझा...लेकिन अभी मैं इतने सारे रुपये पाऊँ कहीं से? मकान-जमीन जैसी चीजें जब तक बिकती नहीं हैं तब तक तो बिना फसल वाली जमीन ही है।'

ज़रा नखरे करके सुनेत्रा बोली-'तुम्हारे पास क्या इतना रुपया नहीं है?'  

'क्या कहती है तू? तीन-चार लाख क्या घर में गाड़ रखा है? मकान बेचे बगैर...'

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