नारी विमर्श >> प्यार का चेहरा प्यार का चेहराआशापूर्णा देवी
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नारी के जीवन पर केन्द्रित उपन्यास....
16
सागर भौंचक-सा हो उठा। बोला, “यही तो कह रहा हूं। तकलीफ उठाने की जरूरत ही क्या थी? मुझे देवी-देवता के प्रति कोई खास भक्ति नहीं है।"
"ऐ, छिः छिः ! क्या बक रहा है तू, सागर? यह काली देवी कितनी जाग्रत है, जानता है? तू जो भी मनौती करेगा, वह पूरी हो जाएगी।
"यों ही हो जाएगा ! मैं राजा होना चाहता हूं हो जाऊंगा?"
"देख, देवी-देवता से मजाक नहीं करना चाहिए। तू प्रार्थना कर कि फस्र्ट डिविजन में पास कर जाऊं, जरूर ही पास कर जाएगा।"
सागर होंठ विदकाकर कहता है, “सो मैं यदि प्रार्थना नहीं करूंगा तो भी हो जाऊंगा। जो कुछ लिखकर आया हूं, उसमें तो बदलाव नहीं आ जाएगा।"
लतू कहती है, “विश्वास रखने पर होता है, वरना मेरी जैसी भोंदू लड़की फस्र्ट डिविजन में पास करती?"
"तुम भोंदू लड़की हो?”
"नहीं तो क्या?"
बीच-बीच में लतू इसी तरह उदास हो जाती है। और तभी सागर के मन में एक कचोट-सी जगती है।
सागर को इच्छा होता है कि उसका हाथ थामे कुछ देर तक बैठा
रहे। मगर यह सोचने पर हंसी आती है। कितना बेवकूफ जैसा लगेगा देखने में !
"मुझे जोरों की प्यास लगी है।"
"लो, झमेला !”
लतू कहती है, यहां पीने का पानी कहां मिलेगा? गांव के आदमी तालाब का पानी पीते हैं, तू तो वह पियेगा नहीं।”
"तालाब का पानी? दिमाग खराब है क्या?"
"यही तो कह रही हूं। तूने कहा कि प्यास लगी है।"
तू उठकर इधर-उधर घूम-फिरकर वापस आती है और बुझे हुए स्वर में कहती हैं, “कहीं कुछ दिख नहीं रहा। मन्दिर का दरवाजा खुलने पर शायद कोई इन्तजाम हो जाए। अहा, तूने बताया कि प्यास लगी है..."
लतू घबराई हुई जैसी दिख पड़ी।
"ठीक है, रहने दो।"
सागर ने कहा, “अभी क्या वक्त हो रहा है?"
“यही तो मन्दिर के शिखर पर धूप उतर आयी है, लगता है, चार बज गए।...मन्दिर में भी तो गंगाजल रहता है...."
लतू को मानो बेचैनी का अहसास हो रहा है।
लतू फिर उठकर खड़ी हो जाती है।
बहुत देर तक लतू पर नजर नहीं पड़ती है।
सागर को भय लगने लगता है।
इस अनजाने मन्दिर के चबूतरे पर वह एकाकी बैठा हुआ है, इर्दगिर्द कुछेक देहातीं बैठकर बीड़ी के कश ले रहे हैं। दो-चार जनों के बदन पर लाल कपड़े हैं, जिन्हें देखकर भय कम होने के बजाय बढ़ता ही जा रहा है।
इतनी देर के बाद सागर को याद आता है कि वह साहब दादू के मकान से यह कहकर निकला था कि घर जा रहा हूं। मां अवश्य ही उसी समय लौट गई होगी।
उसके बाद?
उसके बाद की स्थिति पर सोचते ही सागर का दिल दहल उठता है।...अब तक इस बात का स्मरण नहीं आया उसे !
उसे क्या हो गया था?
सागर के अन्दर जैसे एक कंपकंपी छा गई।
यह भी क्या एक किस्म की पिशाच की पुकार नहीं है क्या?
दोपहर के वक्त भी तो यह सब हुआ करता है।
सागर के चाचा की लड़की चिल्ला-चिल्लाकर जो-सो बकती नहीं है क्या? 'भरी दोपहर की वेला, भूत नहीं मारता देला'—जरूर ही वैसा ही कुछ हुआ है। वरना इतनी देर तक कुछ याद क्यों नहीं आया? लतू के पीछे-पीछे नशे से विभोर की तरह क्यों आ रहा था? झाड़ी-जंगल, कांटों के पेड़-पौधों की अवहेलना करते हुए? लतू दरअसल क्या है, कौन जाने ! मुझे बगैर बताये क्यों ले आयीं?
यह लड़की पगली भी हो सकती है।
मन्दिर के पिछवाड़े के रास्ते को पकड़ लतू आती हुई दिख पड़ी।
लतू के साथ एक घंघराले बालों वाला कसौटी जैसा काला आदमी है, मगर उसके हाथ में क्या है?
सागर के रोंगटे खड़े हो गये, सागर का पूरा शरीर पसीने से तर-बतर हो गया। सागर अपने पैर जमीन में रोपकर बैठ गया।
लतू बोली, "इतनी देर के बाद समस्या हल हुई। आना क्या चाह रहा था? कितनी चिरौरी कर वही उस तरफ उसका घर है, बहुत सारे कच्चे नारियल हैं। लोग-बाग पूजा करने के वास्ते देर सारे कच्चे नारियल खरीदते हैं। लो भैया, डाब का मुंह काट दो।”
नहीं, अब सागर के पैर जमीन पर रोपे गये जैसी स्थिति में नहीं हैं, पैरों में रेस के घोड़े की तीव्रतर गति आ गई है।
“वह कौन है, कौन? दौड़कर भाग क्यों रहा है? ऐ सागर !"
लतू भी दौड़ लगाती है।
सिर्फ उस आदमी को हाथ के इशारे से वापस जाने को कहती है।
लतू अवाक् हो जाती है।
लतू सोचती है, कच्चे नारियल वाले को देखकर डर गया है यह लड़का। सच, देखने में डाकू जैसा लगता है। उसे न लाकर कच्चे। नारियल को कटवाकर ले आती तो अच्छा रहता। पानी कहीं गरम हो जाये इसलिए...
दौड़ते-दौड़ते लतू पसीने-पसीने हो जाती है।
बाप रे, कितना बुद्धू लड़का है !
एक घुंघराले बालों वाले आदमी को देखकर इतनी डर ! हाय, इतनी तकलीफ उठाकर मां काली के दरवाजे तक आयी पर दर्शन न हो सके। लतू अपने आपको कोसने लगी। चाहे मन्दिर का दरवाजा खुला नहीं था, पर देवी तो वास्तव में सोई हुई नहीं थी। लतू की जो मनोकामना थी, मां से प्रार्थना कर उसे जताया क्यों नहीं?
सागर दौड़ रहा था।
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