लोगों की राय

नारी विमर्श >> प्यार का चेहरा

प्यार का चेहरा

आशापूर्णा देवी

प्रकाशक : सन्मार्ग प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2001
पृष्ठ :102
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 15403
आईएसबीएन :000

Like this Hindi book 0

5 पाठक हैं

नारी के जीवन पर केन्द्रित उपन्यास....

15

लतू के भाव में कोई परिवर्तन नहीं आया।

लतू ने मुसकराकर कहा, “खैर, 'दीदी' कहा तो सही।'' मैंने भी तय किया था, अब मैं दबाव नहीं डालूंगी, मर्जी होगी तो तू कहेगा।" मालूम है, मुझे कोई दीदी नहीं कहता?”

सागर ने अवाक् होकर कहा, “यह क्या, तुमसे छोटा कोई नहीं है?"

“है। मुहल्ले में। वे लोग दीदी कहते हैं। मगर वे बिलकुल छोटेछोटे हैं। कहें या न कहें, मेरी बला से। एक बड़ा लड़का कहे तो उससे सुख मिलता है।"

लतू ने उसका एक हाथ कसकर पकड़ लिया।

बोली, “सावधान ! यहां खड्ड है।”

सागर के हाथ के उस पकड़े हुए स्थान में एक तरह की जलन, चिनचनाहट जैसी हो रही है।

सागर ने आहिस्ता से हाथ छुड़ाकर कहा, “हम लोग बहुत पहले से पैदल चल रहे हैं, किस रास्ते से ले जा रही हो? मुझे तो अपना घर बहुत पहले ही पहुंच जाना चाहिए था।"

लतू फिर अपनी खास भंगिमा के साथ हंस पड़ी। सागर की पीठ में एक टहोका लगाकर बोली, “इतनी देर बाद होश आया? तुम लोगों का घर बहुत पहले ही पीछे छोड़ हम आगे निकल आए हैं।”

यह क्या? हम लोग कहां जा रहे हैं?

लतू उसी तरह ही-ही हंसते हुए कहती है, "वैरागी बनकर जा रहे हैं। देख नहीं रहा कि जंगल में घुस रहे हैं। इतनी देर बाद हजरत के दिमाग में यह बात आयी ! बहुत पहले ही पहुच जाना चाहिए था। मैं क्या फिर तुझे मंत्रमुग्ध करके ले जा रही थी, जिस तरह कि पिशाच पुकारकर ले जाता है? पिशाच के बारे में सुना है? या फिर न भी सुना हो। कलकत्ता का लड़का है तू, मालूम न भी हो सकता है।”

"मालूम क्यों नहीं होगा?" सागर दृढ़ता के साथ कहता है, “रात के वक्त स्वजन के गले की आवाज की नकल करके पुकारता

है।"

"ओह, फिर जानता है ! हम लोगों के यहां एक बार एक व्यक्ति को भट्टाचार्य का नाम सुना है? उन्हीं लोगों की एक बहू को पिशाच पुकारकर ले गया था।"

"धत्त, यह सब सचमुच होता है क्या?''

सागर शायद मंत्रमुग्धता के दोषारोपण को खंडित करने के ख़याल से बोल उठता है, “वे सव गढ़ी हुई कहानियां हैं। अगर पिशाच है तो जिन भी है, ब्रह्मदैत्य भी है, भूत-प्रेत भी हैं।"

"नहीं हैं क्या?"

लतू हाथ-मुंह नचाकर कहता है, “दुनिया में क्या नहीं है? सब है। न होता तो भट्टाचार्यों की बहू पिशाच की पुकार सुन जाती ही क्यों? रात के तब दो बज रहे थे, अचानक उस बहू के पति ने देखा, बहू नहीं है, कमरा खुला हुआ है। उस वक्त वह चिल्ला उठा, सब लोग जमा हो गए। दो दिन तक खोज-पड़ताल चलती रही, कितने ही लोग कितनी ही तरह की बातें करने लगे, उसके बाद पता चला कि पिशाच के द्वारा पुकारकर ले जाने का मामला है। तालाब के किनारे मुरदा होकर पड़ी हुई थी, बगल में एक मुंह-कटा कच्चा नारियल था।

मुंह-कटा नारियल !

सागर के ज्ञान की परिधि के परे है यह सब बात। सागर मानो खुद को ही कहीं एक मुंह-कटे नारियल के सामने मरकर पड़ा हुआ देखता है।

सागर का गला सूख जाता है, “मुंह-कटा कच्चा नारियल क्यों?"

“वाह, रहेगा नहीं? कच्चे नारियल में ही तो प्राणों को भरकर रख लेता है।"

"वाह ! प्राण लेकर उन्हें कौन-सा लाभ होता है?"

"बाप रे, तू कुछ भी नहीं जानता। किसी एक व्यक्ति की जान बचाने की खातिर ही तो दूसरे को मारता है। मान ले, तू बहुत बीमार है, चिनु बुआ पिशाच के पास जाकर बिलख-बिलखकर रो पड़ती है। ऐसे में पिशाच रात में मुझे बुलाकर ले जाएगा और मेरे प्राण कच्चे नारियल में भर चिनु बुआ को दे देगा। उस कच्चे नारियल का पानी पीकर तू बच जाएगा।"

“धत्त !" सागर की बुद्धि अब लौट आती है, “यह सब वाहियात बात है।"

"वाहियात है तो रहने दे। दुनियाभर के आदमी विश्वास करते हैं, तू नहीं करता है तो बला से !"

सागर बहस के लहजे में कहता हैं, "अगर यह सही है तो राजकुमार और राजकुमारी की मौत नहीं होती।"

लतू उदासी के साथ कहती हैं, उन्हें मालूम नहीं है कि पिशाच कहां रहते हैं, इसीलिए उनकी मौत होती है।”

"मैं पिशाच-विशाच के बारे में सुनना नहीं चाहता, अच्छा नहीं लग रहा, घर चलो।"

"घर?”

लतू वही हंसी हंस देती है।

"घर अब बहुत दूर है। देख, हम कहां चले आए हैं।"

जंगल की फांक से एक पुराना मन्दिर दिख रहा है।

लतू उसका हाथ कसकर पकड़े कहती हैं, "सावधानी से अर, यहां कांटे की झाड़ी है। यह 'साधक कोली को मन्दिर' है, बहुत ही पुराना।"

सागर को याद आया, मां के मुंह से यह नाम सुना है। यहां की विशेष विख्यात देवी है वह।

सागर को यहां आने की कौन-सी जरूरत थी?

मंदिर अभी बन्द है।

लतू कहती हैं, “आ, हम लोग यहां कुछ देर चबूतरे पर बैठे। साढ़े चार बजे सेवायत आकर दरवाजा खोलेगा।"

सागर के पैर दुख रहे हैं।

सागर ऊबकर कहता है, "यहां मेरे आने की क्या जरूरत थी?"

"अरे, तू नाराज हो गया? मैं थी, इसीलिए इतनी तकलीफ झेलकर शॉर्टकट से ले आयी।"

लतू की आंखें आंसू से भर गईं।

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book

A PHP Error was encountered

Severity: Notice

Message: Undefined index: mxx

Filename: partials/footer.php

Line Number: 7

hellothai