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यात्रा की मस्ती

मस्तराम मस्त

प्रकाशक : श्रंगार पब्लिशर्स प्रकाशित वर्ष : 2020
पृष्ठ :50
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 1217
आईएसबीएन :1234567890

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मस्तराम को पता चलता है कि यात्रा में भी मस्ती हो सकती है।

जब उसने बाथरूम के सामने मुझे अपनी सीट के बारे में बताया था, तब सबसे पहला ख्याल तो मेरे दिमाग में यही आया था कि यह बात शायद वह मुझसे गप्पें मारने के लिए बता रही है। लेकिन जब सीट पर आकर अंधेरे में कुछ भी ठीक से नहीं दिखा तो मेरी सोच की दिशा बदल गई और मैं यह भी भूल गया था कि वह बात तो कॉरीडोर में भी कर सकती थी, फिर अपनी बर्थ के बारे में क्यों बता रही थी। अब इस बात का मतलब समझ में आ रहा था। इतनी शिद्दत से किसिंग हम काॉरीडोर में किसी हालत में नहीं कर सकते थे। वहाँ लाइट भी थी, और अन्य लोगों का आना जाना भी। यह राज अभी भी नहीं खुला था कि यह सब क्यों हो रहा था। लेकिन कुल मिलाकर मजा आ रहा था। मैं नहीं जानता कि फिर कब मेरी जिंदगी में किसिंग का मौका आयेगा। यह तो शर्तिया कहा जा सकता है कि ऐसी किसिंग का मौका तो बड़ी किस्मत वालों को ही मिलता होगा। इसलिए मैं पूरे इतमीनान से चुम्बनों मे गाफिल हो गया।

मुझे इस बात का अहसास हो रहा था कि, यदि मैं उसके बुलावे पर इस तरह उसकी बर्थ पर नहीं आता, तो जिंदगी का यह मजा तो शायद ही कभी मिलता। हाँ, मैं यह अब तक भी नहीं समझ पा रहा था कि एक ऐसी लड़की, जिसे मैंने पिछले तीन-चार दिनों में पहली बार ही देखा है, कैसे इस तरह चूमने की हद तक जा सकती है। कहीं वह मुझे कोई और तो नहीं समझ रही थी! ऐसा तो केवल फिल्मों में ही सुना है, असल जिंदगी में ऐसा कहाँ होता है! देखने में इतनी नासमझ या कुंद बुद्धि की भी नहीं लग रही है। चक्कर क्या है!

इधर उसका जोश बढ़ा और वह उचकती हुई मेरे गले के और भी पास आ गई। सेकेण्ड क्लास की बर्थ कितनी कम चौड़ी होती है, इस बात मेरा ध्यान आज पहली बार गया था। मेरे पीछे दो कूपों को अलग करने वाला पार्टीशन था, पैर फैलाने चाहे तो बर्थ पर लगी लोहे की पत्ती में जा फँसे। अधलेटी को सहारा देने के लिए मैंने अपने दायें हाथ से उसके कंधे और पीठ को सहारा दिया। असलियत में आज कई नये खुलासे हो रहे थे, अपने बारे में भी और जिंदगी के इस खेल के बारे में भी!

ओंठों की आपसी पहचान कुछ देर और चलती रही।  इस बीच उसकी बर्थ के सामने वाली लम्बी बर्थ यानी कि मेरी बर्थ के दायीं ओर वाली बर्थ पर किसी ने खाँसा। मेरी धड़कन कुछ सेकेण्डों के लिए बिलकुल रुक गई। मेरा दिमाग एकदम सुन्न हो गया था। आज तक मैं अपने आपको जाँबाज, खलीफा और न जाने क्या-क्या समझता था। लेकिन लगता है कि अध्यापक बनने के बाद मेरी हिम्मत हवा हो गई थी, मुझे खुद मानना मुश्किल पड़ रहा था कि मैं इतना कमजोर दिल इन्सान बन गया हूँ। पहली बार एहसास हुआ कि आदमी उम्र के साथ कितना डरपोक हो जाता है। मैं खुद 23 का हो रहा हूँ, उसकी उम्र 16 से 21 के बीच में ही होने की संभावना है। जितनी दिलदारी से वह मुझे बुलाकर लाई है और अब किस कर रही है, उससे उसके 21 के बजाय 16 के पास होने के आसार अधिक नजर आते हैं। कम उम्र में आदमी ज्यादा आगा-पीछा नहीं सोच पाता। यदि यह 21 की होती तो कामबाण का इतना गहरा असर नहीं होता। यदि होता भी तो वह अपने आप पर काबू कर लेती।

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