श्रंगार-विलास >> यात्रा की मस्ती यात्रा की मस्तीमस्तराम मस्त
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मस्तराम को पता चलता है कि यात्रा में भी मस्ती हो सकती है।
या तो मेरी आँखों से उसकी आँखे अंधेरे की अधिक अभ्यस्त रही होंगी, या फिर ऐसा
हो सकता है कि मंजिल की चाह में वह इतनी केंद्रित हो चुकी थी कि अब उसे केवल
अपना टारगेट ही दिख रहा था। क्योंकि, अगले ही क्षण उसके ओंठ मेरे ओंठों के साथ
जुड़ चुके थे। बचपन में लोग पप्पी लेते हैं, तब बड़े होते बच्चे उनसे दूर भागने
लगते है। मेरा साथ भी बचपन में ऐसा ही हुआ था, इसलिए बचपने में जब से पप्पी से
दूर भागा, तब उसके बाद से मैंने कभी मुड़कर नहीं देखा। आज भी वैसा ही हुआ,
ओंठों के आपस में जुड़ते ही, लगभग तुरंत ही प्रतिक्रिया में मैं उससे अलग हो
गया। परंतु, लगभग तुरंत ही मुझे अहसास हुआ कि मैंने गलती कर दी है। इसलिए
अंधेरे में ही अंदाज लगाते हुए मेरे होंठ फिर से उसके ओंठों से जा मिले।
किशोरावस्था में कुश्ती, धींगा मुश्ती और झगड़े तो होते हैं, लेकिन ओंठों का
कोई काम नहीं होता। रसभरे ओंठ क्या होते हैं, इस बात का पता आज मुझे पहली बार
लगा था। कुछ देर मुझे हालात को समझने में लगी, लेकिन जल्दी ही मैंने भी उसके ही
अंदाज में अपने ओंठों से उसके ओंठों का मुआयना करना शुरू कर दिया। मेरे ओंठों
के जवाबी उत्तर से वह और जोर से लहरा कर मुझसे चिपट गई। उसकी पीठ और गला में
बाये घुटने और जाँघ पर टिका हुआ था। मुझे ऐसा लग रहा था कि जैसे एक के बाद एक
मुझे रसभरियों का स्वाद मिल रहा था। बचपन की पप्पी तो एकतरफा होती थी, लेकिन यह
तो चुम्बन था, जिसका काम और असर अनजाना तो था, लेकिन बहुत मजे का था। आज से
पहले मैंने कभी-भी किसी के भी इस तरह के चुम्बन नहीं लिए थे, इसलिए चुम्बन का
कोई अनुभव मुझे नहीं, पर यहाँ तो मजा कई गुना आ रहा था, क्योंकि जितना मैं उसके
ओंठों का अनुभव कर रहा था, वह मुझसे शर्तिया ज्यादा कर रही थी। असल में
कौन-किसका चुम्बन ले रहा है, यह तो जानना मुश्किल था, हर कश में एक नई तरंग ऊपर
से लेकर नीचे तक दौड़ जाती थी! चुम्बन की तीव्रता से मेरे शरीर के अंदर बिजली
दौड़ जाती थी! वहीं उसके लहराने से यह भी पता चल जाता था कि उसके पूरे शरीर में
भी करंट के झटके बार-बार लग रहे थे।
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