लोगों की राय

श्रंगार-विलास >> यात्रा की मस्ती

यात्रा की मस्ती

मस्तराम मस्त

प्रकाशक : श्रंगार पब्लिशर्स प्रकाशित वर्ष : 2020
पृष्ठ :50
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 1217
आईएसबीएन :1234567890

Like this Hindi book 0

मस्तराम को पता चलता है कि यात्रा में भी मस्ती हो सकती है।


पिछले साल ही हम कालेज से निकले थे, अब अच्छी खासी कमाई कर रहे थे। इस बात की ठीक-ठाक उम्मीद थी कि शादी भी किसी-न-किसी ढंग की लड़की से हो ही जायेगी। लेकिन बाकी सब तो कई साल पहले बुक हो चुके थे, और अब अपनी हसरतें ख्याली-पुलावों को पकाकर उनसे ही पूरी कर रहे थे। मुझे लगता है कि वे सभी चाहते थे कि यदि एक आधा चक्कर चल जाये तो अच्छा रहेगा, पर 18-20 साल की लड़कियाँ उनको क्यों हाथ रखने देने वाली थीं।

पहले दिन जिस हाल में मेरी ड्यूटी थी, वहाँ लगभग 200 से ऊपर ही छात्र और छात्राएँ थीं। कुछ लड़कियाँ तो वाकई खूबसूरत थीं, लेकिन पता नहीं क्यों, मुझे इस खेल में मन नहीं लग पा रहा था। बाकी लोगों को बुरा न लगे, इसलिए स्टाफ रूम में बात करते हुए मैंने भी अपनी पसन्द की एक लड़की सबको बता दी।

अगले दिन की परीक्षा में जिस हाल में मेरी ड्यूटी थी वहाँ अपना काम संभाला ही था कि विजय वहाँ आया और बोला, "तुम हाल 203 में मेरी जगह चले जाओ"। मैंने अपने साथी अध्यापक की तरफ देखा तो वह बोला, "चले जाइए, इनका काम यहाँ अटका हुआ है!"

मै विजय के हाल में चला गया। इत्तेफाक से मैंने अपने साथियों को अपनी पसन्द की जिस लड़की के बारे में बताया कि वह भी आज हाल  203 में थी। मुझे यह देखकर कुछ अटपटा-सा लगा। मुझे लगा कि अगर कहीं उस लड़की का ध्यान मुझ पर जायेगा, तो वह यह भी सोच सकती थी कि मैं उसको स्टॉक कर रहा हूँ।

चलती गाड़ी में मैं इन्हीं ख्यालों में खोया हुआ कि तभी मेरा ध्यान अपने सामने की सीटों में बायीं तरफ गया, जहाँ कुछ हलचल हो रही थी। ध्यान से देखने पर समझ आया कि वहाँ कोई बैठा हुआ है। गर्दन उचका कर मैंने आगे देखा तो थोड़ा आगे खिसक कर बैठती हुई वह दिखाई दे गई। अंधेरे में आँखे अभ्यस्त हुईं तो यह भी पक्का हो गया कि वह मेरी तरफ ही देख रही थी।

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book