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यात्रा की मस्ती

मस्तराम मस्त

प्रकाशक : श्रंगार पब्लिशर्स प्रकाशित वर्ष : 2020
पृष्ठ :50
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 1217
आईएसबीएन :1234567890

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मस्तराम को पता चलता है कि यात्रा में भी मस्ती हो सकती है।


2

अंधेरे में अपनी बर्थ पर बैठे हुए पिछले कुछ दिनों की घटनाएँ मुझे याद आने लगीं। कालेज की परीक्षाएँ खत्म होने के बाद  कक्षाएँ जैसे ही बंद हुईं, विजय और मैंने गर्मियों की छुट्टियों में वापस अपने होम टाउन में कुछ दिन बिताने का कार्यक्रम बनाया। लेकिन हमारे अन्य साथियों जो कि पिछले कई वर्षों से पढ़ा रहे हैं, उन्होंने बताया कि अगले हफ्ते मेडिकल की प्रवेश परीक्षाओं के लिए यहाँ उपस्थित रहना होगा।

हम दोनों का मूड बन चुका था और हमें परीक्षाओं का काम बिलकुल बेकार का लग रहा था। इस बारे में जब अपने सहयोगी अध्यापकों से बात की, तो वे बड़े मजे लेकर मेडिकल परीक्षाओं मे आने वाले परीक्षार्थियों की रंगीनियों के बारे में बताने लगे। उनकी बात सुनकर हमें भी अपने कालेज में मेडिकल परीक्षाओं के दिन याद आ गये।

इंजीनियरिंग की परीक्षा में अधिकतर लड़के ही भाग लेते हैं, लड़कियाँ तो बहुत ही कम होती हैं, और जो होती भी हैं, वे कुछ खास नहीं होतीं। इसके विपरीत मेडिकल की प्रवेश परीक्षा में तो बिलकुल फिल्मों जैसा माहौल बन जाता है। आस-पास रंग बिरंगी तितलियाँ दिखती हैं। हर परीक्षा में कुछ लोग तो वाकई सफलता चाहते हैं, लेकिन एक बड़ी जनसंख्या उन लोगों की होती है, जो औरों की देखा-देखी परीक्षा में भाग लेते हैं। इन लोगों को सज संवरकर परीक्षा में जाना पसन्द होता है।

अगले दिन कुछ और अध्यापकों से बात हुई तो यह बिलकुल पक्का हो गया कि वाकई मजा आने वाला है। कुछ अध्यापक तो अधेड़ उम्र के हैं फिर भी उनका उत्साह देखते बन रहा था।

विजय और मैंने पिछले साल से ही पढ़ाना शुरु किया है, इसलिए हम बाकी सभी अध्यापकों से उम्र में बहुत छोटे हैं, फिर भी हमसे अधिक बाकी लोग उत्साहित थे। यहाँ तक कि सभी ने अपने-अपने लिए पहले दिन ही लड़कियाँ पसंद कर लीं। किसी-किसी ने तो दो या तीन तक पसंद की। लग रहा था कि मुफ्त में मिल रही हैं तो जितनी चाहो रख लो।

मजा इस बात का था कि हिम्मत किसी की भी, एक भी लड़की से कुछ कहने की नहीं थी, लेकिन ख्याली-पुलाव सबके सब पका रहे थे। विजय और मैं, हम दोनों ही इन उम्रदराज लोगों की हालत देखकर मजे ले रहे थे।

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