श्रंगार-विलास >> यात्रा की मस्ती यात्रा की मस्तीमस्तराम मस्त
|
0 |
मस्तराम को पता चलता है कि यात्रा में भी मस्ती हो सकती है।
मैंने चादर के बाहर की दुनिया के बारे में चिंता करनी बंद कर दी और अपना सिर
उसकी छाती से उठाकर खुद को उसके बगल में अपने बायें कुहनी पर टिकाया। अंधेरे
में मैं उसके चेहरे की तमतमाहट और शारीरिक तनाव को महसूस कर सकता था। मैंने
अपना दायीं हथेली कुर्ते के ऊपर से ही उसकी छाती पर हल्के हाथ से रखी। वह हल्की
झुरझरी लेकर मुझसे और सट गई।
आज से पहले मैंने किसी भी लड़की को इस तरह नहीं छुआ था। इसलिए मुझे समझ नहीं पा
रहा था कि इस काम को कैसे करना चाहिए। असल में तो अपनी याद में मैंने किसी भी
लड़की को कैसे भी नहीं छुआ था। हो सकता है कि बस में या किसी और वाहन में कभी
पास बैठी अजनबी से थोड़ा बहुत जाँघे टकरा गईं हो, पर ऐसी हर स्थिति में मैंने
सभ्यता की मूर्ति बनकर अपने आपको अधिकाधिक बचाने की कोशिश ही की है। बल्कि ऐसी
स्थिति आने पर मैं, लगभग हमेशा ही सीट से उठकर खड़ा हो जाता था। हमेशा ऐसी
स्थिति से बचने की कोशिश की जिसमें कोई लड़की मुझ पर गलत इलजाम लगा सके।
मेरा बुद्धि फिर भटक गई। आखिर कोई अजनबी लड़की कैसे मुझ पर इतनी इनायत कर रही
है। कोई सभ्य लड़की ऐसा करे, ऐसा तो कभी नहीं सुना। मैं यह मानने को तैयार नहीं
था कि वह असभ्य और नीचे चाल-चलन वाली है। इसे जानने का कोई मजबूत कारण तो मेरे
पास नहीं था, लेकिन परीक्षा कक्ष में मैंने उसे चारों दिन देखा था। तब मुझे ऐसा
कोई भी इशारा नहीं मिला था, जिससे उसके चाल-चलन पर मेरा कोई शक जाता। यह अलग
बात है कि मेरा दिमाग में ऐसा कोई शुबहा भी नहीं था, इसलिए मैं क्यों बेवजह ऐसा
सोचता, या मेरा ध्यान भी इस पर जाता। मैं अपने दिमाग के घोड़े फिर से इस
उधेड़-बुन को समझने में दौड़ाने लग गया। मेरे मन में विचार ऐसे विचार चल रहे
थे, लेकिन मेरी हथेली धीरे-धीरे उसकी छाती पर पहने हुए कपड़ों पर ऊपर ही ऊपर
घूम रही थी।
मेरा ध्यान तब टूट गया, जब मेरी गाफिलियत और सुस्त अंदाज से बेसब्री होकर उसने
मेरी हथेली अपने बायें हाथ से पकड़ी और कुर्ते के अंदर ले जाते हुए अपनी बायीं
छाती पर रखकर दबाई। आज तक मैंने लड़कियों के शरीर के इस हिस्से को केवल ब्लू
फिल्मों और नग्न चित्रों में ही देखा था। सीधे छूने का अनुभव तो बिलकुल निराला
था।
|