श्रंगार-विलास >> वयस्क किस्से 2 वयस्क किस्से 2मस्तराम मस्त
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मस्तराम के कुछ और किस्से
आंटी ने उसके पास बैठते हुए कहा, "अब सही है, वो भी आने वाली है, तब तक तुम चाहो तो बाथरूम हो आओ, मैं पीने का पानी ले आती हूँ।" यह कहकर आंटी ने उसे बाथरूम की तरफ इशारा किया। उसके जाते ही आंटी फिर से उस कमरे में आई और मुझसे बोली, "मैं इसे तैयार करती हूँ, तब तक तुम ध्यान से देखो, आगे काम आयेगा।" यह कह कर वह वापस लौट गई। कुछ ही देर में वह वापस कमरे में आया। उसकी जीन्स का सामने वाला हिस्सा इस तरह फूला हुआ था जैसे उसने कोई गेंद छुपा रखी हो। वह झिझकता हुआ कमरे में आ खड़ा हुआ।
आंटी उसे देखकर बोली, "वहाँ क्या खड़े हो, मेरे पास आओ।" वह दो कदम आगे बढ़ा सोफे पर बैठी हुई आंटी के सामने पहुँच गया। आंटी ने आगे हाथ बढ़ाकर उसकी कमीज जो कि जीन्स के अंदर खुंसी हुई थी, उसे बड़े प्यार से बाहर निकाला और फिर बड़े ही इतमीनान के साथ कमीज के बटन एक-एक करके खोलने लगी। दो-तीन बटन खोलने के बाद आंटी ने अपना हाथ रोका और उससे बोली, "तुम चाहो तो मेरे ब्लाउज में हाथ डाल सकते हो।" वह सकताया हुआ सा सक्रिय हुआ, लेकिन इसी बीच आंटी ने फिर से उसकी कमीज के बाकी बटन खोल डाले और कंधे से कमीज उतार कर सोफे पर फेंक दी। मेरा मन हुआ कि तुरंत दरवाजा खोलकर अंदर चली जाऊँ और इस खेल में हिस्सा लूँ, लेकिन फिर आंटी की बात याद आई और मैं वहीं से देखती रही।
उस लड़के ने पहले तो आँटी के ब्लाउज में फंसे हुए उरोजों को बाहर से ही टटोलने की कोशिश की। ऊपर से ही हाथ अंदर डालकर पहले बायें उरोज पर पूरी हथेली फिराई फिर दायें फिराई। इस बीच आंटी ने उसकी उसकी जीन्स की जिप धीरे-धीरे खोलनी शुरू की। उत्तेजना अधिक बढ़ जाने के कारण वह अपनी कमर को इधर-उधर हिलाने लगा। उससे आंटी के ब्लाउज के हुक तो खुल गये पर ब्रा के हुक तो खुल ही नहीं पा रहे थे, इसलिए वह घूमकर आंटी की पीठ के पीछे गया और काफी कोशिश के बाद उसने ब्रा के हुक खोल दिये। आंटी मजे से बैठी ब्रा के खुलने का इंतजार करती रही। ब्रा के हुक खुल जाने से ऊपर उठ गई और उसके विशाल उरोज खेलते-कूदते बाहर आ गये और उनके इतने बड़े उरोजों को देखकर मेरे हाथ अपनी खुद की कुर्ते के अंदर पहुंच गये। मुझे अहसास हुआ कि मेरे उरोज आंटी के उरोजों से कितने छोटे थे!
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