गीता प्रेस, गोरखपुर >> शिवपुराण शिवपुराणहनुमानप्रसाद पोद्दार
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भगवान शिव की महिमा का वर्णन...
तदनन्तर 'मा नो महान्मुतं मा नो अर्भकं मा न उक्षन्तमुत मा न उक्षितम्। मा नो वधीः पितरं मोत मातरं मा न: प्रियास्तन्वो रुद्र रीरिषः' तथा 'मा नस्तोके तनये मा न आयुषि मा नो गोषु मा नो अश्वेषु रीरिष:। मा नो वीरान् रुद्र भामिनो वधीर्हविष्मन्त: सदमित् त्वा हवामहे।' इन पूर्वोक्त दो मन्त्रों द्वारा केवल अक्षतों से ग्यारह रुद्रों का पूजन करे। फिर 'हिरण्यगर्भः समवर्तताग्रे भूतस्य जातः पतिरेक आसीत्। स दाधार पृथिवीं द्यामुतेमां कस्मै देवाय हविषा विधेम।' (यजु० १३। ४) इत्यादि मन्त्र से जो तीन ऋचाओं के रूप में पठित है दक्षिणा चढ़ाये। 'देवस्य त्वा सवितुः प्रसवेऽश्वि नोर्बाहुभ्यां पूष्णो हस्ताभ्याम्। अश्विनोर्भैषज्येन तेजसे ब्रह्मवर्चसायाभि षिञ्चामि सरस्वत्यै भैषज्येन वीर्यायाआद्यायाभि षिञ्चामीन्द्रस्येन्द्रियेण बलाय श्रियै यशसेऽभिषिञ्चामि।' (यजु० २०। ३) इस मन्त्र से विद्वान् पुरुष आराध्यदेव का अभिषेक करे। दीप के लिये बताये हुए 'नम आशवे चाजिराय च नमः शीघ्र्याय च शीम्याय च नम ऊर्म्याय चावस्वन्याय च नमो नादेयाय च द्वीप्याय च।' इत्यादि मन्त्र से भगवान् शिव की नीराजना (आरती) करे। तत्पश्चात् 'इमां रुद्राय तवसे कपर्दिने क्षयद्वीराय प्रभरामहे मतीः। यथा शमसद् द्विपदे चतुष्पदे विश्वं पुष्टं ग्रामे अस्मिन्ननातुरम्।' इत्यादि तीन ऋचाओं से भक्तिपूर्वक रुद्रदेव को पुष्पांजलि अर्पित करे। 'मा नो महान्मुतं मा नो अर्भकं मा न उक्षन्तमुत मा न उक्षितम्। मा नो वधीः पितरं मोत मातरं मा न: प्रियास्तन्वो रुद्र रीरिषः' इस मन्त्र से विज्ञ उपासक पूजनीय देवता की परिक्रमा करे। फिर उत्तम बुद्धिवाला उपासक 'मा नस्तोके तनये मा न आयुषि मा नो गोषु मा नो अश्वेषु रीरिष:। मा नो वीरान् रुद्र भामिनो वधीर्हविष्मन्त: सदमित् त्वा हवामहे।'
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