गीता प्रेस, गोरखपुर >> शिवपुराण शिवपुराणहनुमानप्रसाद पोद्दार
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भगवान शिव की महिमा का वर्णन...
इस मन्त्र से भगवान् को साष्टांग प्रणाम करे। एष ते रुद्र भागः सह स्वस्राम्बिकया तं जुषस्व स्वाहा। एष ते रुद्र भाग आखुस्ते पशुः।। (यजु० ३। ५७) इस मन्त्र से शिवमुद्रा का प्रदर्शन करे। 'यतो यतः समीहसे ततो नो अभयं कुरु। शं नः कुरु प्रजाभ्योऽभयं नः पशुभ्य।।' (यजु० ३६। २३) इस मन्त्र से अभय नामक मुद्रा का, 'त्र्यम्यबकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्। उर्वारुकमिव बन्धनान्मृत्योर्मुक्षीय मामृतात्। त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं प्रतिवेदनम्। उर्वारुकमिव बन्धनादितो मुक्षीय मामुतः।' मन्त्र से ज्ञान नामक मुद्रा का तथा नमः सेनाभ्यः सेनानिभ्यश्च वो नमो नमो रथिभ्यो अरथेभ्यश्च वो नमो नमः। क्षतृभ्यः संग्रहीतृभ्यश्च वो नमो नमो महद्भ्यो अर्भकेभ्यश्च वो नमः।। (यजु० १६। २६)इत्यादि मन्त्र से महामुद्रा का प्रदर्शन करे। 'नमो गोभ्यः श्रीमतीभ्यः सोरभेयीभ्य एव च। नमो ब्रह्मसुताभ्यश्च पवित्राभ्यो नमो नमः।।' (गोमतीविद्या) इस ऋचा द्वारा धेनुमुद्रा दिखाये। इस तरह पाँच मुद्राओं का प्रदर्शन करके शिवसम्बन्धी मन्त्रों का जप करे अथवा वेदज्ञ पुरुष ' शतरुद्रिय०' (यजुर्वेद का वह अंश, जिसमें रुद्र के सौ या उससे अधिक नाम आये हैं और उनके द्वारा रुद्रदेव की स्तुति की गयी है। (देखिये यजु० अध्याय १६)) मन्त्र की आवृत्ति करे। तत्पश्चात् वेदज्ञ पुरुष पंचांग पाठ करे। तदनन्तर 'देवा गातुविदो गातुं वित्त्वा गातुमित। मनसस्पत इमं देव यज्ञँस्वाहा वाते धाः।।' (यजु० ८। २१) इत्यादि मन्त्र से भगवान् शंकर का विसर्जन करे। इस प्रकार शिवपूजा की वैदिक विधि का विस्तार से प्रतिपादन किया गया।
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