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गीता प्रेस, गोरखपुर >> शिवपुराण

शिवपुराण

हनुमानप्रसाद पोद्दार

प्रकाशक : गीताप्रेस गोरखपुर प्रकाशित वर्ष : 2006
पृष्ठ :812
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 1190
आईएसबीएन :81-293-0099-0

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भगवान शिव की महिमा का वर्णन...


जिन्होंने शिवतत्त्व का साक्षात्कार कर लिया है अथवा जिन पर शिव की कृपादृष्टि पड़ चुकी है, वे सब मुक्त ही हैं - इसमें संशय नहीं है। आत्मस्वरूप से जो स्थिति है वही मुक्ति है। एकमात्र अपने आत्मा में रमण या आनन्द का अनुभव करना ही मुक्ति का स्वरूप है। जो पुरुष क्रिया, तप, जप, ज्ञान और ध्यानरूपी धर्मों में भलीभांति स्थित है, वह शिव का साक्षात्कार करके स्वात्मारामस्वरूप मोक्ष को भी प्राप्त कर लेता है। जैसे सूर्यदेव अपनी किरणों से अशुद्धि को दूर कर देते हैं, उसी प्रकार कृपा करने में कुशल भगवान् शिव अपने भक्त के अज्ञान को मिटा देते हैं। अज्ञान की निवृत्ति हो जाने पर शिवज्ञान स्वत: प्रकट हो जाता है। शिवज्ञान से अपना विशुद्ध स्वरूप आत्मारामत्व प्राप्त होता है और आत्मारामत्व की सम्यक् सिद्धि हो जाने पर मनुष्य कृतकृत्य हो जाता है।

इस तरह यहाँ जो कुछ बताया गया है। वह पहले मुझे गुरुपरम्परा से प्राप्त हुआ था। तत्पश्चात् मैंने पुन: नन्दीश्वर के मुख से इस विषय को सुना था। नन्दिस्थान से परे जो स्वसंवेद्य शिव-वैभव है, उसका अनुभव केवल भगवान् शिव को ही है। साक्षात् शिवलोक के उस वैभव का ज्ञान सब को शिव की कृपा से ही हो सकता है अन्यथा नहीं - ऐसा आस्तिक पुरुषों का कथन है।

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