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गीता प्रेस, गोरखपुर >> शिवपुराण

शिवपुराण

हनुमानप्रसाद पोद्दार

प्रकाशक : गीताप्रेस गोरखपुर प्रकाशित वर्ष : 2006
पृष्ठ :812
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 1190
आईएसबीएन :81-293-0099-0

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भगवान शिव की महिमा का वर्णन...


नैमिषारण्य तथा बदरिकाश्रम में सूर्य और वृहस्पति के मेषराशि में आने पर यदि स्नान करे तो उस समय वहाँ किये हुए स्नान-पूजन आदि को ब्रह्मलोक की प्राप्ति कराने वाला जानना चाहिये। सिंह और कर्क राशि में सूर्य की संक्रान्ति होनेपर सिन्धु नदी में किया हुआ स्नान तथा केदार तीर्थ के जल का पान एवं स्नान ज्ञानदायक माना गया है। जब बृहस्पति सिंहराशि में स्थित हों, उस समय सिंह की संक्रान्ति से युक्त भाद्रपद मास में यदि गोदावरी के जल में स्नान किया जाय तो वह शिवलोक की प्राप्ति  करानेवाला होता है, ऐसा पूर्वकाल में स्वयं भगवान् शिव ने कहा था। जब सूर्य और बृहस्पति कन्याराशि में स्थित हों, तब यमुना और शोणभद्र में स्नान करे। वह स्नान धर्मराज तथा गणेशजी के लोक में महान् भोग प्रदान करानेवाला होता है, यह महर्षियों की मान्यता है। जब सूर्य और बृहस्पति तुलाराशि में स्थित हों, उस समय कावेरी नदी में स्नान करे। वह स्नान भगवान् विष्णु के वचन की महिमा से सम्पूर्ण अभीष्ट वस्तुओं को देनेवाला माना गया है। जब सूर्य और बृहस्पति वृश्चिक राशि पर आ जायँ, तब मार्गशीर्ष (अगहन) के महीने में नर्मदा में स्नान करने से श्रीविष्णुलोक की प्राप्ति हो सकती है। सूर्य और बृहस्पति के धनुराशि में स्थित होने पर सुवर्णमुखरी नदी में किया हुआ स्नान शिवलोक प्रदान करानेवाला होता है, जैसा कि ब्रह्माजी का वचन है। जब सूर्य और बृहस्पति मकरराशि में स्थित हों, उस समय माघ मास में गंगाजी के जल में स्नान करना चाहिये। ब्रह्माजी का कथन है कि वह स्नान शिवलोक की प्राप्ति करानेवाला होता है। शिवलोक के पश्चात् ब्रह्मा और विष्णु के स्थानों में सुख भोगनेपर अन्त में मनुष्य को ज्ञान की प्राप्ति हो जाती है। माघ मास में तथा सूर्य के कुम्भराशि में स्थित होने पर फाल्गुन मास में गंगाजी के तट पर किया हुआ श्राद्ध, पिण्डदान अथवा तिलोदक-दान पिता और नाना दोनों कुलों के पितरों की अनेकों पीढ़ियों का उद्धार करनेवाला माना गया है। सूर्य और बृहस्पति जब मीनराशि में स्थित हों, तब कृष्णवेणी नदी में किये गये स्नान की ऋषियों ने प्रशंसा की है। उन-उन महीनों में पूर्वोक्त तीर्थों में किया हुआ स्नान इन्द्रपद की प्राप्ति करानेवाला होता है। विद्वान् पुरुष गंगा अथवा कावेरी नदी का आश्रय लेकर तीर्थवास करे। ऐसा करने से तत्काल किये हुए पाप का निश्चय ही नाश हो जाता है।

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