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गीता प्रेस, गोरखपुर >> शिवपुराण

शिवपुराण

हनुमानप्रसाद पोद्दार

प्रकाशक : गीताप्रेस गोरखपुर प्रकाशित वर्ष : 2006
पृष्ठ :812
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 1190
आईएसबीएन :81-293-0099-0

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भगवान शिव की महिमा का वर्णन...


सिन्धु और शतद्रु (सतलज) नदी के तट पर बहुत-से पुण्यक्षेत्र हैं। सरस्वती नदी परम पवित्र और साठ मुखवाली कही गयी है अर्थात् उसकी साठ धाराएँ हैं। विद्वान् पुरुष सरस्वती के उन-उन धाराओं के तटपर निवास करे तो वह क्रमश: ब्रह्मपद को पा लेता है। हिमालय पर्वत से निकली हुई पुण्यसलिला गंगा सौ मुखवाली नदी है, उसके तटपर काशी-प्रयाग आदि अनेक पुण्यक्षेत्र हैं। वहाँ मकरराशि के सूर्य होने पर गंगा की तटभूमि पहले से भी अधिक प्रशस्त एवं पुण्यदायक हो जाती है। शोणभद्र नद की दस धाराएँ हैं, वह बृहस्पतिके मकरराशि में आनेपर अत्यन्त पवित्र तथा अभीष्ट फल देने वाला हो जाता है। उस समय वहाँ स्नान और उपवास करने से विनायकपद की प्राप्ति होती है। पुण्यसलिला महानदी नर्मदा के चौबीस मुख (स्रोत) हैं। उसमें स्नान तथा उसके तट पर निवास करने से मनुष्य को वैष्णवपद की प्राप्ति होती है। तमसा के बारह तथा रेवा के दस मुख हैं। परम पुण्यमयी गोदावरी के इक्कीस मुख बताये गये हैं। वह ब्रह्महत्या तथा गोवध के पाप का भी नाश करनेवाली एवं रुद्रलोक देनेवाली है। कृष्णवेणी नदी का जल बड़ा पवित्र है। वह नदी समस्त पापों का नाश करने वाली है। उसके अठारह मुख बताये गये हैं तथा वह विष्णुलोक प्रदानकरने वाली है। तुंगभद्रा के दस मुख हैं। वह ब्रह्मलोक देनेवाली है। पुण्यसलिला सुवर्ण-मुखरी के नौ मुख कहे गये हैं। ब्रह्मलोक से लौटे हुए जीव उसी के तटपर जन्म लेते हैं। सरस्वती नदी, पम्पासरोवर, कन्याकुमारी अन्तरीप तथा शुभकारक श्वेत नदी - ये सभी पुण्यक्षेत्र हैं। इनके तटपर निवास करने से इन्द्रलोक की प्राप्ति होती है। सह्य पर्वत से निकली हुई महानदी कावेरी परम पुण्यमयी है। उसके सत्ताईस मुख बताये गये हैं। वह सम्पूर्ण अभीष्ट वस्तुओं को देनेवाली है। उसके तट स्वर्गलोक की प्राप्ति करानेवाले तथा ब्रह्मा और विष्णु का पद देनेवाले हैं। कावेरी के जो तट शैवक्षेत्र के अन्तर्गत हैं, वे अभीष्ट फल देने के साथ ही शिवलोक प्रदान करनेवाले भी हैं।

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