लोगों की राय
गीता प्रेस, गोरखपुर >>
शिवपुराण
शिवपुराण
प्रकाशक :
गीताप्रेस गोरखपुर |
प्रकाशित वर्ष : 2006 |
पृष्ठ :812
मुखपृष्ठ :
सजिल्द
|
पुस्तक क्रमांक : 1190
|
आईएसबीएन :81-293-0099-0 |
|
7 पाठकों को प्रिय
100 पाठक हैं
|
भगवान शिव की महिमा का वर्णन...
अध्याय ५-८
भगवान् शिव के लिंग एवं साकार विग्रह की पूजा के रहस्य तथा महत्व का वर्णन
सूतजी कहते हैं- शौनक! जो श्रवण, कीर्तन और मनन - इन तीनों साधनों के अनुष्ठान में समर्थ न हो, वह भगवान् शंकर के लिंग एवं मूर्ति की स्थापना करके नित्य उसकी पूजा करे तो संसार-सागर से पार हो सकता है। वंचना अथवा छल न करते हुए अपनी शक्ति के अनुसार धनराशि ले जाय और उसे शिवलिंग अथवा शिवमूर्ति की सेवा के लिये अर्पित कर दे। साथ ही निरन्तर उस लिंग एवं मूर्ति की पूजा भी करे। उसके लिये भक्तिभाव से मण्डप, गोपुर, तीर्थ, मठ एवं क्षेत्र की स्थापना करे तथा उत्सव रचाये। वस्त्र, गन्ध, पुष्प, धूप, दीप तथा पूआ और शाक आदि व्यंजनों से युक्त भांति-भांति के भक्ष्य-भोजन अन्न नैवेद्य के रूप में समर्पित करे। छत्र, ध्वजा, व्यजन, चामर तथा अन्य अंगोंसहित राजोपचार की भांति सब सामान भगवान् शिव के लिंग एवं मूर्ति को चढ़ाये। प्रदक्षिणा, नमस्कार तथा यथाशक्ति जप करे। आवाहन से लेकर विसर्जन तक सारा कार्य प्रतिदिन भक्तिभाव से सम्पन्न करे। इस प्रकार शिवलिंग अथवा शिवमूर्ति में भगवान् शंकर की पूजा करनेवाला पुरुष श्रवणादि साधनों का अनुष्ठान न करे तो भी भगवान् शिव की प्रसन्नता से सिद्धि प्राप्त कर लेता है। पहले के बहुत-से महात्मा पुरुष लिंग तथा शिवमूर्ति की पूजा करने मात्र से भवबन्धन से मुक्त हो चुके हैं।
ऋषियोंने पूछा- मूर्ति में ही सर्वत्र देवताओं की पूजा होती है (लिंगमें नहीं), परंतु भगवान् शिव की पूजा सब जगह मूर्ति में और लिंग में भी क्यों की जाती है? सूतजी ने कहा- मुनीश्वरो! तुम्हारा यह प्रश्न तो बड़ा ही पवित्र और अत्यन्त अद्भुत है। इस विषय में महादेवजी ही वक्ता हो सकते हैं। दूसरा कोई पुरुष कभी और कहीं भी इसका प्रतिपादन नहीं कर सकता। इस प्रश्न के समाधान के लिये भगवान् शिव ने जो कुछ कहा है और उसे मैंने गुरुजी के मुख से जिस प्रकार सुना है उसी तरह क्रमश: वर्णन करूँगा। एकमात्र भगवान् शिव ही ब्रह्मरूप होनेके कारण 'निष्कल' (निराकार) कहे गये हैं। रूपवान् होने के कारण उन्हें 'सकल' भी कहा गया है। इसलिये वे सकल और निष्कल दोनों हैं। शिव के निष्कल-निराकार होने के कारण ही उनकी पूजा का आधारभूत लिंग भी निराकार ही प्राप्त हुआ है। अर्थात् शिवलिंग शिव के निराकार स्वरूप का प्रतीक है। इसी तरह शिव के सकल या साकार होने के कारण उनकी पूजा का आधारभूत विग्रह साकार प्राप्त होता है अर्थात् शिव का साकार विग्रह उनके साकार स्वरूपका प्रतीक होता है। सकल और अकल (समस्त अंग- आकार सहित साकार और अंग-आकार से सर्वथा रहित निराकार) रूप होनेसे ही वे 'ब्रह्म' शब्द से कहे जानेवाले परमात्मा हैं। यही कारण है कि सब लोग लिंग (निराकार) और मूर्ति (साकार) दोनों में ही सदा भगवान् शिव की पूजा करते हैं। शिव से भिन्न जो दूसरे-दूसरे देवता हैं, वे साक्षात् ब्रह्म नहीं हैं। इसलिये कहीं भी उनके लिये निराकार लिंग नहीं उपलब्ध होता।
पूर्वकाल में बुद्धिमान-ब्रह्मापुत्र सनत्कुमार मुनि ने मन्दराचल पर नन्दिकेश्वर से इसी प्रकार का प्रश्न किया था।
...Prev | Next...
मैं उपरोक्त पुस्तक खरीदना चाहता हूँ। भुगतान के लिए मुझे बैंक विवरण भेजें। मेरा डाक का पूर्ण पता निम्न है -
A PHP Error was encountered
Severity: Notice
Message: Undefined index: mxx
Filename: partials/footer.php
Line Number: 7
hellothai