गीता प्रेस, गोरखपुर >> शिवपुराण शिवपुराणहनुमानप्रसाद पोद्दार
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भगवान शिव की महिमा का वर्णन...
सूतजी कहते हैं- मुनीश्वरो! इस साधन- का माहात्म्य बताने के प्रसंग में मैं आप- लोगों के लिये एक प्राचीन वृत्तान्त का वर्णन करूँगा, उसे ध्यान देकर आप सुनें। पहले की बात है, पराशर मुनि के पुत्र मेरे गुरु व्यासदेव- जी सरस्वती नदी के सुन्दर तटपर तपस्या कर रहे थे। एक दिन सूर्यतुल्य तेजस्वी विमान से यात्रा करते हुए भगवान् सनत्कुमार अकस्मात् वहाँ जा पहुँचे। उन्होंने मेरे गुरु को वहाँ देखा। वे ध्यान में मग्न थे। उससे जगने पर उन्होंने ब्रह्मपुत्र सनत्कुमारजी को अपने सामने उपस्थित देखा। देखकर वे बड़े वेग से उठे और उनके चरणों में प्रणाम करके मुनि ने उन्हें अर्ध्य दिया और देवताओं के बैठने योग्य आसन भी अर्पित किया। तब प्रसन्न हुए भगवान् सनत्कुमार विनीत भाव से खड़े हुए व्यासजी से गम्भीर वाणी में बोले- 'मुने! तुम सत्य वस्तु का चिन्तन करो। वह सत्य पदार्थ भगवान् शिव ही हैं, जो तुम्हारे साक्षात्कार के विषय होंगे। भगवान् शंकर का श्रवण, कीर्तन, मनन - ये तीन महत्तर साधन कहे गये हैं। ये तीनों ही वेदसम्मत हैं। पूर्वकाल में मैं दूसरे-दूसरे साधनों के सम्भ्रम में पड़कर घूमता-घामता मन्दराचल पर जा पहुँचा और वहाँ तपस्या करने लगा। तदनन्तर महेश्वर शिव की आज्ञा से भगवान् नन्दिकेश्वर वहाँ आये। उनकी मुझपर बड़ी दया थी। वे सबके साक्षी तथा शिवगणों के स्वामी भगवान् नन्दिकेश्वर मुझे स्नेहपूर्वक मुक्ति का उत्तम साधन बताते हुए बोले- भगवान् शंकरका श्रवण, कीर्तन और मनन - ये तीनों साधन वेदसम्मत हैं और मुक्ति के साक्षात् कारण हैं; यह बात स्वयं भगवान् शिव ने मुझसे कही है। अत: ब्रह्मन्! तुम श्रवणादि तीनों साधनों का ही अनुष्ठान करो।' व्यासजी से बारंबार ऐसा कहकर अनुगामियोंसहित ब्रह्मपुत्र सनत्कुमार परम सुन्दर ब्रह्मधाम को चले गये। इस प्रकार पूर्वकाल के इस उत्तम वृत्तान्त का मैंने संक्षेप से वर्णन किया है।
ऋषि बोले- सूतजी! श्रवणादि तीन साधनों को आपने मुक्ति का उपाय बताया है। किंतु जो श्रवण आदि तीनों साधनों में असमर्थ हो, वह मनुष्य किस उपाय का अवलम्बन करके मुक्त हो सकता है। किस साधनभूत कर्म के द्वारा बिना यत्न के ही मोक्ष मिल सकता है?
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