जीवनी/आत्मकथा >> सुकरात सुकरातसुधीर निगम
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पढिए सत्य और न्याय की खोज करने वाले सुकरात जैसे महामानव की प्रेरक संक्षिप्त जीवनी जिसने अपने जीवन में एक भी शब्द नहीं लिखा- शब्द संख्या 12 हजार...
श्मशान पहुंचकर शव चिता पर रखा गया। आसव-स्नेह का तर्पण हुआ और सुकरात ने आग दी। सूर्योदय से पूर्व ही फूल चुन लिए गए और चिता की भस्म सुकरात ने एक कलश में रख ली। फिर दिवंगत आत्मा के लिए तर्पण किया और कलश लेकर घर लौट आए। सभी ने स्नान किया और संस्कार भोज में सम्मिलित हुए।
दूसरे दिन पूरा घर सागर-जल से धोकर और सुगंध से सुवासित कर पवित्र किया गया। दाह संस्कार के बाद तीसरे, नवें और तेरहवें दिन सुकरात ने विधिवत बलि और भोज का आयोजन किया। पितर के प्रथम, द्वितीय और तृतीय वार्षिक श्राद्ध सुकरात ने पूरी श्रद्धा से संपादित किए। प्रथम श्राद्ध पर राजाध्यक्ष पेरीक्लीज और प्रधान मूर्तिकार फिदीआस भी आए। सुकरात ने अपोलो की एक छोटी मूर्ति पेरीक्लीज को भेंट की।
लेखक टाइमन और प्राचीन परंपरा के अनुसार, जिसे आधुनिक विद्वानों ने पुष्ट नहीं किया है, तीन देवियों की मूर्तियां बनाने का काम अब सुकरात के पास आ गया था। तीसरे श्राद्ध से पूर्व ही उन्होंने तीनो मूर्तियां बनाकर फिदिआस के पास भेज दी थीं। मूर्तियों की चहुंओर प्रशंसा हो रही थी। फिदीआस ने तो प्रशंसा की ही। पर सुकरात संतुष्ट नहीं थे। उन्हें प्रतीत हुआ कि तीनों मूर्तियों में शालीनता, सौंदर्य और काव्य व आनंद का तात्विक अंतर स्पष्ट रूप से अभिव्यक्त नहीं हुआ है। उन्हें दिव्य संकेत मिला कि शिलाखंडों में प्राण फूंकना उनके वश की बात नहीं है अतः शिलाखंडों पर छेनी मत चलाओ। मूर्तियों का नहीं मनुष्यों का निर्माण करो। सुकरात ने कहा कि वे इस आदेश का पालन करेंगे। उनकी आत्मोन्नति का मार्ग कहीं और है।
बहरहाल तीन देवियों की मूर्तियां अक्रोपोलिस में रखी गई थीं। अवश्य ये मूर्तियां सुंदर रही होंगी तभी पोसानियस (दूसरी शताब्दी) के समय तक निश्चित रूप से सुरक्षित रही थीं। पिता की मृत्यु के तीन वर्ष बाद, मां की सहमति से, मूर्तिशाला बंद कर दी गई और उसमें रखी मूर्तियां दिवंगत मूर्तिकार के प्रियजनों को भेंट कर दी गईं।
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