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जीवनी/आत्मकथा >> सुकरात

सुकरात

सुधीर निगम

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :70
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 10548
आईएसबीएन :9781613016350

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पढिए सत्य और न्याय की खोज करने वाले सुकरात जैसे महामानव की प्रेरक संक्षिप्त जीवनी जिसने अपने जीवन में एक भी शब्द नहीं लिखा- शब्द संख्या 12 हजार...



जीवन की दिशा

सुकरात गत दो दिनों से असंयत थे। मन के भीतर उतरते, घंटो मौन बैठे रहते पर कहीं कोई प्रकाश की किरण नहीं, कहीं कोई इंगित नहीं। वे समझ गए थे कि बीता हुआ कल ऐसा दीपक है जो अपना सारा तेल पी चुका है, उसमें प्रकाश का जागरण नहीं हो सकता। नए दीप का निर्माण करने के लिए उन्हें उस भूमि की तलाश करनी होगी जिसकी मिट्टी से उसे निर्मित किया जा सके।

तभी एक विचार कौंधा, मस्तिष्क में प्रकाश फैल गया - वे विचार के विश्व में, दर्शन की दुनिया में रमेंगे। दर्शन का विशद अध्ययन करने के लिए उनके पग एथेंस के सार्वजनिक पुस्तकालय की ओर बढ़ गए।

पुस्तकालय के बाहर दरवाजे पर लिखा था - ‘आत्माओं का उपचार केंद्र।’ सुकरात मन ही मन प्रसन्न हुए, सही स्थान पर पहुंचने के लिए। सीधे उस विभाग में पहुंचे जहां दर्शन संबंधी पुस्तकें रखी थी। पुस्तकालय अध्यक्ष से विचार विमर्श किया। पुस्तकाध्यक्ष विद्वान था। उसने बताया ‘‘दर्शन के लिए यूनानी शब्द है ‘फिलोसोफिया’ (फिलोसफी) जो ‘फिलो’ और ‘सोफिया’ से मिलकर बना है। ‘फिलो’ का अर्थ है प्रेम या अनुराग और ‘सोफिया’ ज्ञान को कहते हैं। आपका ज्ञान के प्रति अनुराग देखकर मैं कह सकता हूं कि आपको दर्शन का अध्ययन करना अभीष्ट होगा।

‘‘प्रचलित धारणा है कि ‘फिलोसोफिया’ विशुद्ध बौद्विक होने के कारण चिंतकों ने इसे जीवन की समस्याओं के साथ नहीं जोड़ा। ‘फिलोसोफिया’ उनके लिए एक बौद्विक व्यायाम भर था, मिथकों और अंध विश्वासों के स्थान पर विवेकसम्मत ज्ञान का उदय था, जीवन यापन का साधन नहीं। परंतु यह बौद्धिक व्यायाम न होकर जीवन के लक्ष्य को समझने का एक साधन है। सुकरात, आप दर्शन को पुरुषार्थ-साधन समझना और किस प्रकार मनुष्य दूरदृष्टि, भविष्य दृष्टि तथा अंतर्दृष्टि के साथ जीवन यापन कर सके इसकी शिक्षा देना। यही दर्शन का उद्देश्य है।’’

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