जीवनी/आत्मकथा >> सुकरात सुकरातसुधीर निगम
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पढिए सत्य और न्याय की खोज करने वाले सुकरात जैसे महामानव की प्रेरक संक्षिप्त जीवनी जिसने अपने जीवन में एक भी शब्द नहीं लिखा- शब्द संख्या 12 हजार...
पिता की अंत्येष्टि
साफ्रोनिस्कोस की मृत्यु का समाचार सुनते ही मित्र और संबंधी शोक व्यक्त करने आने लगे। अंत्येष्टि संबधी परंपराओं का सुकरात ने पूरी तरह पालन किया। मृतक के शरीर को सुवासित स्नेह से आलेपित किया गया फिर शुभ्र श्वेत वस्त्र पहनाए गए। पिघले मोम में डुबोए कपड़े से लपेटकर शव को पेटी में रखा गया। अंतिम दर्शनों के लिए मुंह खुला रखा गया।
शव के साथ मृतक की प्रिय वस्तुएं-उनकी अंगूठी, मणिमाला, टोपी, और भुजबंध, पत्नी के आग्रह से उनकी छेनी और हथोड़ी - शव पेटिका में रख दी गईं। परलोक के प्रहरी श्वान को प्रसन्न करने के लिए मधु मिश्रित रोटी भी संभालकर रखी गई। तत्पश्चात शव पेटी को अर्थी पर रखकर अर्थी को घर के दालान में रख दिया गया। शव के पैर द्वार की ओर थे। सिर के नीचे तकिया रखकर सिर को फूलों से सुसज्जित कर दिया गया। इस स्थिति में शव को दर्शनार्थियों के लिए एक दिन रखा जाना था। शव को मक्खियों और धूप बचाने के लिए संबंधी महिलाएं फेनारत के साथ पंखे और छाते लेकर पेटिका को घेर कर बैठ गईं। सभी ने काले या भूरे वस्त्र पहन रखे थे और बालों में राख छिड़क रखी थी। प्रथा के अनुसार किसी अन्य के घर से मंगाकर एक कलश जल द्वार पर रख दिया गया।
शोक संवेदना प्रकट करने आईं महिलाएं छाती पीट रहीं थीं, उच्च स्वर में चीख-चिल्ला रही थीं, नाखूनों से अपने गाल खरोंच रहीं थी। सुकरात के अनुरोध पर फेनारत ने वैसा करने से स्त्रियों को रोका। पुरुषों ने शोक प्रदर्शन के लिए अपने बाल कटवाकर काले वस्त्र धारण कर लिए थे।
मान्यता थी कि सूर्य-किरणें पड़ने से शव दूषित हो जाता है अतः सूर्योदय से पूर्व दाह संस्कार कर दिया जाता था। रात के तीसरे पहर शवयात्रा प्रारंभ हुई। अर्थी उठाने से पहले देवताओं को अंजलि भर दूध और आसव अर्पित किया गया। नगर प्राचीर से लगभग 13 स्टेडिया (लगभग ढ़ाई कि0मी0) दूर श्मशान भूमि थी। सबसे आगे एक महिला दो गैलन आसव और एक गैलन तेल लेकर चल रही थी। दाह संस्कार के समय इसे शव पर छिड़का जाना था। सुकरात तथा तीन अन्य लोग अर्थी उठाए चल रहे थे। अन्य व्यक्तियों की तरह सुकरात ने कंधा नहीं बदला। अर्थी के पीछे शोकमग्न पुरुष, उनके पीछे महिलाएं और सबसे पीछे वंशी वादक चल रहे थे।
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