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जीवनी/आत्मकथा >> सुकरात

सुकरात

सुधीर निगम

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :70
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 10548
आईएसबीएन :9781613016350

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पढिए सत्य और न्याय की खोज करने वाले सुकरात जैसे महामानव की प्रेरक संक्षिप्त जीवनी जिसने अपने जीवन में एक भी शब्द नहीं लिखा- शब्द संख्या 12 हजार...


सुकरात के प्रारंभिक जीवन के विषय में प्रामाणिक स्रोतों का अभाव है। सुकरात के विषय में हमें उपलब्ध प्रमुख स्रोत तीन है। एक तो दार्शनिक प्लेटो (427-347 ई0पू0), दूसरे इतिहासकार जे़नोफोन (430-357 ई0पू0) और तीसरे नाटककार अरिस्तोफानीस की रचनाएं। सुकरात प्लेटो से 42 वर्ष, जेनोफोन से 39 वर्ष और अरिस्तोफानीस से 22 वर्ष बडे़ थे। अतः इनकी रचनाओं में सुकरात के प्रारंभिक जीवन का वर्णन नहीं है। सुखांत नाटककार अरिस्तोफानीस अपने नाटक ‘बादल’ (न्यूब्स) में सुकरात का उल्लेख उनका मज़ाक उड़ाने के उद्देश्य से करता है। यह नाटक लिखे जाने के समय सुकरात की आयु 46 से ऊपर थी। नाटक एक प्रहसन मात्र था और सुकरात के प्रारंभिक जीवन पर कोई प्रकाश नहीं डालता।

पूर्ववर्ती लेखकों के अनुसार सुकरात ने अपने पिता के व्यवसाय को अपनाया। एथेंस के राज्याध्यक्ष पेरीक्लीज (राज्यकाल 460-429 ई0पू0) के विश्वासपात्र महान् मूर्तिकलाविद् फिदिआस के निर्देशन में एथेंस के मंदिरों और नगर दुर्ग के भीतरी भाग में स्थापित की जाने वाली देवियों की मूर्तियों का कार्य तेजी से चल रहा था। स्वयं फीदिआस ने ओलंपिया के मंदिर में स्थापित करने के लिए जीअस देवता की ऐसी अप्रतिम प्रतिमा का निर्माण किया था बाद में जिसकी गणना विश्व के सात महान आश्चर्यों में हुई। दुर्भाग्य से यह प्रतिमा पूर्णतः विनष्ट हो चुकी हैं। फिदिआस ने नगर दुर्ग में स्थापित की जाने वाली तीन देवियों- यूफ्रोसाइन, अग्लेसिया और थालिया की मूर्तियों के निर्माण का कार्य सोफ्रोनिस्कोस को सौंपा। वे देवियां क्रमशः शालीनता की, सौंदर्य की तथा काव्यकला व आनंद की प्रतीक थीं। सुकरात के पिता ने प्रसन्नता और आत्मविश्वास के साथ यह चुनौती स्वीकार की। परंतु दुर्भाग्य से प्रस्तर खंड पर पहली छेनी चलाने से पूर्व ही वे चल बसे।

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