जीवनी/आत्मकथा >> सिकन्दर सिकन्दरसुधीर निगम
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जिसके शब्दकोष में आराम, आलस्य और असंभव जैसे शब्द नहीं थे ऐसे सिकंदर की संक्षिप्त गाथा प्रस्तुत है- शब्द संख्या 12 हजार...
माईएजा सिकंदर और मकदून अभिजात्यों के बच्चों जैसे टालमी, हेफास्तिओन, कैसेंडर के लिए बोर्डिंग स्कूल की तरह था। अनेक विद्यार्थी सिकंदर के मित्र हो गए। बाद में वे सिकंदर के सहयोगी या सेनापति बने। वे एक दूसरे को एतैरिए (सहचर) कहते थे जैसा कि इलियड में विभिन्न नायक और योद्धा एक दूसरे को संबोधित करते हैं। सिकंदर के एतैरिए भी इलिएड के नायकों की तरह सामान्य लक्ष्यपूर्ति (विश्व विजय) के लिए एकजुट होकर कार्य करते रहे। एतैरिए शब्द प्रेमिकाओं के लिए भी प्रयुक्त होता था। एथेंस के शासक पैरीक्लीज (मृत्यु ईसा पूर्व 429) की प्रसिद्ध प्रेमिका असपासिया इसी श्रेणी में आती थी।
अरस्तू ने सिकंदर और उसके साथियों को चिकित्सा, दर्शन, नीति, धर्म, तर्क तथा कला की शिक्षा दी। वह प्रतिदिन किसी न किसी विषय पर विद्यार्थियों को पहले संबोधित करता। बाद में सभी विद्यार्थी वनदेवी की वाटिका में बैठकर गुरु की शिक्षाओं पर वाद-विवाद करते। आवश्यक होने पर वे पत्थर की विशाल कुर्सी पर बैठे अरस्तू के आसपास एकत्र हो जाते या उनके साथ छायादार पथ पर विचरण करते।
सभी विद्यार्थी गुरु के प्रति पूज्य भाव रखते थे और उनसे आलोकमय प्रेरणा कण ग्रहण करते। परंतु सिकंदर ने अपनी श्रद्धा को अरस्तू की बुद्धिमता और ज्ञान का दास नहीं होने दिया। वह शील और विनय का दुष्ट उदाहरण था। सिकंदर के स्वभाव में दूसरों के प्रति उपेक्षा भाव, अनम्यता और अक्खड़ता का आभास गुरु को भी होता था पर वे जानते थे कि मकदूनिया जैसे अर्ध-सभ्य प्रदेश में किसी के भी व्यक्तित्व में ऐसी चारित्रिक दुर्बलताएं सहज ही संचित हो जाती हैं। राजकुल का होनें पर इस उद्धतता का प्रभाव और बढ़ जाता है।
अरस्तू ने अपने शिष्य सिकंदर की मनोवृत्तियों को कोमल बनाने और उन्हें मानवीय संस्पर्श देने के लिए होमर के काव्य ग्रंथों और फ्रीनिखोस तथा एसखीलोस के नाट्य-ग्रंथों का अध्ययन कराया। इलियड में सिकंदर ने विशेष रुचि ली। धीरे-धीरे यह रुचि प्रशंसा भाव में फिर पूजा-भाव में बदल गई।
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