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जीवनी/आत्मकथा >> सिकन्दर

सिकन्दर

सुधीर निगम

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :82
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 10547
आईएसबीएन :9781613016343

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जिसके शब्दकोष में आराम, आलस्य और असंभव जैसे शब्द नहीं थे ऐसे सिकंदर की संक्षिप्त गाथा प्रस्तुत है- शब्द संख्या 12 हजार...



सिकंदर के गुरु अरस्तू

सिकंदर जब 13 वर्ष का हो गया तो फिलिप ने उसके लिए एक समर्थ शिक्षक की तलाश शुरू की। उसने इसोक्रेटस और स्प्यूसिपस जैसे शिक्षा-शात्रियों के नामों पर विचार किया। स्प्यूसिपस प्लेटो का भतीजा था और तत्समय, प्लेटो की मृत्यु के बाद, उसकी अकादमी का अध्यक्ष था। उसे सिकंदर का शिक्षक होना इतना गौरवपूर्ण लगा कि वह अकादमी से त्याग-पत्र देने को प्रस्तुत हो गया। अंततः गुरु की खोज अरस्तू पर आकर समाप्त हुई।

ईसा पूर्व 343-42 के लगभग फिलिप ने अरस्तू को एक पत्र लिखा-‘‘फिलिप का पत्र अरस्तू को, अभिनंदन। ज्ञात हो कि मेरा एक किशोर पुत्र है। मैं देवताओं के प्रति इस कारण आभारी हूं कि वह आपके युग में जन्म लेकर आया है। मुझे आशा है कि आपके द्वारा शिक्षित-प्रशिक्षित किया जाकर वह हमारे और राज्य के उत्तराधिकारी के रूप में योग्य सिद्ध होगा। मकदूनिया में आपका स्वागत है।’’

प्राचीन यूनान और रोम में राजागण दार्शनिकों को किस सम्मान और श्रद्धा की दृष्टि से देखते थे उसका आज अनुमान लगाना कठिन है। प्राचीन भारत में भी दार्शनिक ऋषियों और ब्राह्मण विचारकों की सत्ता-संचालन में प्रमुख भूमिका रही है।

अरस्तू फिलिप से प्रभावित था-उसके राजकीय गुणों और योद्धा रूप से। वह पूर्ण शिक्षित नहीं था इस कारण उसकी निंदा भी होती थी। एथेंस का प्रखर वक्ता डेमोस्थनीज तो यहां तक कहता था कि फिलिप न केवल यूनानियों से असंबद्ध है बल्कि किसी सम्मानित देश का ‘वारवारोस’ (बर्बर) कहाने के योग्य भी नहीं है। वह मकदूनिया का निवासी है जो ऐसा निकृष्ट देश है जहां से एक अच्छा दास भी उपलब्ध नहीं हो सकता।

अरस्तू मकदूनिया पहुँचा। माइएजा स्थित निम्फ्स (वन देवी) के मंदिर को स्कूल का रूप दे दिया गया। अध्यापन के पारिश्रमिक के रूप में फिलिप इस बात के लिए सहमत हो गया कि वह अरस्तू के गृहनगर स्टैगिरा का, जिसका ध्वंस उसने स्वयं किया था, पुनर्निमाण कराएगा और उसके पूर्व नागरिकों को जो दास बना लिए गए थे पुनः क्रय करके मुक्त कर देगा और जो भाग गए हैं उन्हें क्षमा करके फिर से बसाएगा।

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