जीवनी/आत्मकथा >> सिकन्दर सिकन्दरसुधीर निगम
|
0 |
जिसके शब्दकोष में आराम, आलस्य और असंभव जैसे शब्द नहीं थे ऐसे सिकंदर की संक्षिप्त गाथा प्रस्तुत है- शब्द संख्या 12 हजार...
दूसरे दिन सिकंदर की क्षणिक पराजय स्थाई जय में बदल गई। यहां सिकंदर की एक पराजय और हुई जिसे इतिहासकारों ने विस्तार से नहीं लिखा है। यह थी सौन्दर्य के अस्त्र से हृदय-जगत् की पराजय। बैक्ट्रियन सांमत ओक्सिआर्तिस की बेटी रोक्सानै (बैक्ट्रिया में रोशनक) ने सिकंदर से मिलकर इस बात के लिए धन्यवाद किया कि उसे सोग्दियाना किले में कैद के दौरान किसी काम के लिए मजबूर नहीं किया गया है। सिकंदर स्त्रियों में रुचि नहीं लेता था पर रोक्सानै जैसी सर्वांग सुंदरी की मोहकता से वह विमूढ़-सा हो गया। आंखें टिकाकर देखा तो पाया कि उस मोहिनी के अम्लान मुख पर एक शुभ्र, स्वाभाविक तारुण्य भाव झलक रहा है। उसकी कंजी आंखें बड़ी भेदक और पानीदार थीं। ऐसी आंखे प्रेम के लिए संवेदन प्रवण होती हैं।
उसे देखकर सिकंदर चकित रह गया। स्त्रियों के प्रति विराग का मनोभाव तत्काल मिट गया। अभ्यर्थना-सी करने लगा, ‘‘आप यहां आईं, अनुग्रहीत हूं।’’
रोक्सानै को सिकंदर के कथन पर आश्चर्य नहीं हुआ। वह समझ गई थी कि इस वीर पर उसके रूप का जादू चल गया है। अब आगे बोलने की आवश्यकता नहीं थी। सिकंदर पर बंकिम दृष्टि डालते हुए वह अचानक मुड़ी और धीर ललित पग रखते गजगामिनी-सी प्रत्यागमन कर गई। स्वयं तो चली गई पर सिकंदर के पराजित हृदय में निष्काम, निर्मल, निश्चल और निश्छल प्रेम-भावना की लकीरें छोड़ती चली गईं। सिकंदर सोचता रहा कि यह दैवयोग का मंजुल परिणाम है या मनःयोग का। उसने तत्काल विवाह-प्रस्ताव भेज दिया।
सिकंदर के विवाह-प्रस्ताव पर रोक्सानै को तनिक आश्चर्य हुआ। प्रत्यक्ष परोक्ष-सा लगने लगा, सत्य स्वप्न-सा लगने लगा, संकल्प ने विकल्प का रूप धारण कर लिया। उसे भय लगा कि विषम परिस्थितियों में कहा गया सत्य कही असत्य न बन जाए। तभी उसे सिकंदर की प्रेमिल दृष्टि की याद हो आई। उसने सोचा कि कामना के साथ कभी झूठ का संयोग नहीं होता। उसने पिता को अपने विवाह की सहमति दे दी।
ममता के मधुर मोह ने पिता के स्नेहाकुल हृदय को विवाह के लिए विवश कर दिया अन्यथा एक अनाजने नृशंस विजेता से ...।
शादी के बाद संतति प्राप्त करने के नाम पर ‘रतिक्रिया में निमग्न होने और उसका आनंद लेने के बाद सिकंदर समझने लगा कि वह एक मरणशील प्राणी है।
|