जीवनी/आत्मकथा >> सिकन्दर सिकन्दरसुधीर निगम
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जिसके शब्दकोष में आराम, आलस्य और असंभव जैसे शब्द नहीं थे ऐसे सिकंदर की संक्षिप्त गाथा प्रस्तुत है- शब्द संख्या 12 हजार...
उत्तर की ओर सिकंदर का यह अंतिम अभियान था। बैक्ट्रियनों और सोग्दिअनों ने सिकंदर के समक्ष आत्मसमर्पण कर दिया था। पर सिकंदर के जाते ही उन्होंने विद्रोह कर दिया और मकदून रक्षक सैनिकों की हत्या कर दी। समाचार मिलते ही सिकंदर पलटा और विद्रोह का दमन किया। सात सोग्दिअन नगरों में भयंकर नरसंहार किया, जो बचे उन्हें दास बना लिया गया।
बेसस-अभियान सिकंदर के लिए मध्य एशिया का शानदार दौरा सिद्ध हुआ। इसी दौरान सिकंदर ने कंधार (अफगानिस्तान) में सिकंदरिया नगर और तजाकिस्तान में सिकंदरिया इस्केट (दूरस्थ) नगर बसाए। इसी अभियान में सिकंदर मीदिया, पार्थिया, आरिया (पश्चिमी अफगानिस्तान), देंग्रियाना (दक्षिणी-मध्य अफगानिस्तान), बैक्ट्रिया (उत्तरी-मध्य अफगानिस्तान) तथा सीथिया गया।
सिकंदर सोग्दिआना से आगे बढ़ा ही था कि इसी बीच जक्सारतिस के पास से सीथिअन आक्रमणकारी प्रकट हो गए। विगत में सीथियन घुड़सवार धनुधारियों ने कुरुष और दारा प्रथम जैसे अपराजेय राजाओं को पराजित किया था। लड़ाई अत्यंत कठिन थी। उनके विरुद्ध सिकंदर को एक बार हारना भी पड़ा जिसे ईसा पूर्व 352 के पश्चात मकदूनियों की पहली लिखित प्रामाणिक हार मानी जाती है।
सिकंदर के सेनापति नोआर्खेस ने टिप्पणी की, ‘‘उनकी अप्रत्याशितता से कदाचित हम भयभीत हो गए थे।’’
सिकंदर ने सोत्साह कहा, ‘‘नहीं! मुझे भय होता है भेड़ के नेतृत्व में चलती सिंहों की सेना से, मुझे भय होता है सिंह की नेतृत्व में चलती भेड़ों की सेना से। हमारी आज की हार युद्धनीति के तहत हुई है किसी भय के कारण नहीं।’’
शक्ति संचयन के लिए यह हार कुछ उसी प्रकार की थी जैसे खर से युद्ध समय श्रीराम के यह देखने पर कि शत्रु उनकी ओर बढ़ा आ रहा है ‘वे तुरंत चरणों का संचालन करके दो-तीन पग पीछे हट गए’ (...अपासर्पद द्वित्रिपदं किंचित्वरितविक्रमः -श्रीमद्बाल्मीकीय रामायण- 3/30/23)। अंततः विजय सिकंदर को मिली।
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