जीवनी/आत्मकथा >> सिकन्दर सिकन्दरसुधीर निगम
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जिसके शब्दकोष में आराम, आलस्य और असंभव जैसे शब्द नहीं थे ऐसे सिकंदर की संक्षिप्त गाथा प्रस्तुत है- शब्द संख्या 12 हजार...
बेसस की चालों से परेशान होकर सिकंदर ने अपनी नीति बदली। उसने काबुल से लगभग 100 किलोमीटर दूर 11,600 फुट ऊंचे खवाक दर्रे से होकर दल-बल सहित जाने का निश्चय किया। मार्ग मंध बहुत कठिनाई हुई। प्राणों पर बन आई। घोड़े मरने लगे, खाद्य सामग्री निपट गई। जड़ी-बूटी खाकर भी सिकंदर की सेना आगे बढ़ती रही। भयंकर बर्फ गिरने तथा खाद्य सामग्री न होने के पश्चात भी सिकंदर की संकल्पशक्ति तथा सैनिकों की दृढ़ता ने साहस बनाए रखा। सिकंदर के दुःसाहसिक अभियान की जानकारी मिलते ही बेसस का हौसला कुचल गया। अपनी सारी नावें जलाकर वह आक्सस की ओर चला गया। बेसस की घुड़सवार सेना उसे छोड़कर अपने घर लौट गई।
पश्चिम की ओर मुड़कर सिकंदर ने बैक्ट्रिया के प्रमुख नगर बैक्ट्रा (वजीराबाद, पूर्व बल्ख) और आओरनेस (तागु कुरग़न) सरलता से जीत लिए। बैक्ट्रियनों ने सिकंदर की अधीनता स्वीकारते हुए उसके द्वारा नियुक्त पारसीक अर्जबजुस को अपना क्षत्रप मान लिया। बैक्ट्रिया में सिकंदर ने अनेक सिकंदरिया नगरों की स्थापना की।
गले की हड्डी बन चुके बेसस का पीछा करने के लिए ईसा पूर्व 329 के ग्रीष्म के मध्य सिकंदर ने आक्सस की ओर प्रस्थान किया। आक्सस पार करने पर सिकंदर को बेसस के दो अधिकारियों से सूचना मिली कि उन्होंने बेसस को बंदी बना लिया है तथा सम्राट को उसे सौंपने को तैयार हैं। सिकंदर ने टालमी के नेतृत्व में सैनिकों की एक टुकड़ी भेजते हुए कहा कि बेसस को बेड़ियों में नग्न प्रस्तुत किया जाय। ऐसा ही हुआ। उसे सिकंदर के सामने निर्वस्त्र लाया गया। पूछने पर वह दारा के वध का औचित्यपूर्ण कारण न बता सका। सिकंदर ने उसे कोड़े लगवाए। पारसीक परंपरा के अनुसार नाक-कान काट कर उसे एक्बटना की अदालत में पेश किया गया। अदालत ने उसे मृत्युदंड दिया। बेसस के राज्य पर सिकंदर ने अधिकार कर लिया। वहां से सिकंदर को उत्तम घोड़े प्राप्त हुए जिससे मार्ग में मरने वाले घोड़ों की क्षतिपूर्ति हो गई।
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