जीवनी/आत्मकथा >> सिकन्दर सिकन्दरसुधीर निगम
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जिसके शब्दकोष में आराम, आलस्य और असंभव जैसे शब्द नहीं थे ऐसे सिकंदर की संक्षिप्त गाथा प्रस्तुत है- शब्द संख्या 12 हजार...
मकदूनिया और यूनान का हाल
एशिया के अपने चिरवांछित अभियान पर चलते समय मकदूनिया का कार्यभार सिकंदर ने अनुभवी फौजी सेनापति और राजनीतिज्ञ अंतीपातिर को सौंपा था। थीब्ज़ को नष्ट कर देने के बाद आशा की जा रही थी कि सिकंदर की अनुपस्थिति में यूनान शांत रहेगा। वह नहीं चाहता था कि यूनान के नगर राज्य आपस में लड़े। इससे उसकी विश्व एकता की योजना को ठेस पहुंच सकती थी। उसके जाने के तीन वर्ष बाद ईसा पूर्व 331 में स्पार्टा के राजा आर्गस ने मकदूनिया को युद्ध के लिए ललकारा। इतना समय नहीं था कि इस विषय में सिंकदर से राय ली जा सकती अतः अंतीपातर ने युद्ध की चुनौती स्वीकार कर ली। उसका अनुभव उसके काम आया और उसने स्पार्टा को बुरी तरह पराजित कर दिया। राजा आर्गस मारा गया। स्पार्टा के पराभव की घटना सिकंदर को सूचित की गई। परिस्थितियों को देखते हुए उसने अंतीपातर की कार्रवाई का अनुमोदन कर दिया। अंतीपातर और सिंकदर की मां ओलिम्पीआस के बीच गहरे मतभेद थे और वे एक दूसरे की शिकायत सिकंदर से करते रहते थे। सिकंदर ने उन्हें उनके हाल पर छोड़ दिया।
सिकंदर के अभियान के दौरान यूनान सामान्यतः शांत बना रहा और समृद्ध होता रहा। सिकंदर अभियान के दौरान प्राप्त प्रभूत धन मकदूनिया और यूनान को भेजता रहा जिससे पूरे साम्राज्य की अर्थ-व्यवस्था सुदृढ़ हुई और व्यापार बढ़ा। जनता खुशहाल रहने लगी। लेकिन एक दुष्प्रभाव भी पड़ा जिसका दूरगामी असर हुआ। सिकंदर अपनी सेना की घटती सैनिक-संख्या के कारण नए सैनिकों की लगातार मांग करता रहता था और उसे पूरा करना अंतीपातर अपना धर्म समझता था। मकदून स्वयं सिकंदर की सेना में जाने को उत्सुक रहते थे। इससे मकदूनों के लगातार निष्क्रमण के कारण मकदूनिया की जनसंख्या कम होती चली गई। परिणामतः सिकंदर के वर्षों बाद रोम ने मुख्यतः इसी कारण मकदूनिया को अपने अधीन कर लिया।
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