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जीवनी/आत्मकथा >> सिकन्दर

सिकन्दर

सुधीर निगम

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :82
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 10547
आईएसबीएन :9781613016343

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जिसके शब्दकोष में आराम, आलस्य और असंभव जैसे शब्द नहीं थे ऐसे सिकंदर की संक्षिप्त गाथा प्रस्तुत है- शब्द संख्या 12 हजार...


ईसा पूर्व 334 में सिकंदर ने एशिया की ओर प्रयाण किया। उसके साथ 48 हजार पदाति सैनिक, 6 हजार अश्वारोही सैनिक, 120 जहाजों का बेड़ा और 33 हजार नाविक थे। ये मकदूनिया से और यूनान के नगर राज्यों से आए थे। इनमें भृत्तिभोगी सैनिक भी थे। शेष सैनिक थे्रेस, पैओनिया और इलीरिया जैसे नगर राज्यों से जागीरदारी के रूप में प्राप्त किए गए थे।

अगर देखा जाए तो आक्रमण की योजना पूर्ण सावधानी से नहीं बनी थी। अपने आधार केन्द्र से बहुत दूर जाने, अपरिचित देशों से गुजरने, अकूत मानव और आर्थिक संसाधनों से पूर्ण राज्य परसिया पर आक्रमण करने के लिए और बड़ी सेना की अपेक्षा थी। इसके अतिरिक्त परसिया का शासन देशभक्त और सैनिक जाति के निष्ठावान राजा के पास था जो युद्ध में अपनी शक्ति दिखाने को उत्सुक रहता था। परंतु शुत्र-पक्ष में कमजोरियां भी थीं और उन्हीं का लाभ सिकंदर को मिलना था। दारा प्रथम और जरक्सीस जैसे अद्वितीय, अपराजेय और अप्रतिहत योद्धा उत्पन्न करने वाले हखामनी वंश में वंशगत स्वेच्छाचारिता आ गई थी। वर्तमान राजा दारा तृतीय अपने एक पूर्वज की हत्या करके गद्दी पर बैठा था। वह न तो नेता था न ही वीर। उसकी कमियों की पूर्ति दुर्धर्ष सेनापति और क्षत्रप कर देते थे लेकिन कठोरता और कट्टरता के तंतु से बनी राजकीय वंश परंपरा को वह नहीं तोड़ पाते थे।

सिकंदर ने सेना सहित (पूर्वी यूनान और पश्चिमी लघु एशिया यानी आधुनिक तुर्की की सीमाओं का संधिस्थल) हेलिसपोण्ट पार किया। हाथ में भाला लेकर सिकंदर ने कहा, ‘‘डेढ़ शताब्दी पहले इसे परसिया के सम्राट जरक्सीज ने उल्टी दिशा से पार कर लघु एशिया की यूनानी बस्तियों को रौंदा था। अब मैं परसिया की भूमि पर, भाला फेंककर पारसीक साम्राज्य को पूरी तरह विजित कर लेने का दृढ़ संकल्प प्रकट करता हूं। पारसीक सम्राट सुन ले कि आकाश में जैसे दो सूर्य नहीं हो सकते, वैसी ही पृथ्वी पर दो सम्राट नहीं हो सकते।’’ परसिया पर आक्रमण करने की मूल योजना यद्दपि फिलिप के मन से प्रसूत हुई थी परंतु उसे विजित करने के लिए पिता की कूटनीति को वरीयता देने के स्थान पर युद्ध द्वारा उसे जीत लेने की इच्छा भी भाला-प्रक्षेपण से प्रकट होती है।

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