जीवनी/आत्मकथा >> सिकन्दर सिकन्दरसुधीर निगम
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जिसके शब्दकोष में आराम, आलस्य और असंभव जैसे शब्द नहीं थे ऐसे सिकंदर की संक्षिप्त गाथा प्रस्तुत है- शब्द संख्या 12 हजार...
एशिया की ओर प्रयाण
एशिया के अभियान पर निकलने से पूर्व सिकंदर ने अपनी पूरी निजी संपत्ति अपने मित्रों में बांट दी। उनमें से एक पैरीदिकास ने पूछा, ‘‘आपने अपनी संपत्ति क्यों बांट दी ?’’
महत्वाकांक्षाओं से लबरेज सिकंदर ने उत्तर दिया, ‘‘महान बनने के लिए लघुता को छोड़ना ही पड़ता है।’’
‘‘आपने अपने लिए क्या रखा है ?’’ एक और प्रश्न आया।
‘‘आशा!’’ प्रसन्न मानसिकता में डूबे हुए राजा ने कहा।
‘‘आपके सैनिक आपकी आशाओं को पूरा करने में भागीदार रहेंगे। युद्ध के लिए हम जो आपके साथ जाएंगे आपकी ‘आशा’ के अतिरिक्त कुछ भी नहीं बांटना चाहेंगे। हमारी कामना रहेगी कि आपके पराक्रम को कभी पराजय नाम की घटना देखने को न मिले।’’ पैरीदिकास ने अभिभूत हो कहा।
अपनी अनुपस्थित में मकदूनिया और थेरस पर नियंत्रण बनाए रखने, यूनान की देख-रेख करने और अपनी मां को राजकाज में हस्तक्षेप करने से रोकने के लिए सिकंदर ने अंतीपातिर को मकदूनिया का सह-शासक नियुक्त कर दिया। उसकी सहायता के लिए 12 हजार पदाति सेना और डेढ़ हजार अश्वारोही सैनिक रख दिए।
सिकंदर ने एक ऐसी दीर्घ सूत्री योजना को हाथ में लिया था जिसे उसके पिता फिलिप ने बनाया था पर अकाल मृत्यु के कारण कार्यान्वित नहीं कर सका था। सिकंदर के परसिया पर आक्रमण करने के पीछे ठोस कारण थे। सदियों से परसिया यूनान के मामले में दखल देता रहा था और लघु एशिया में बसी यूनानी बस्तियों और नगरों को उत्पीड़ित करता रहा था। यह खतरनाक संभावना सदैव बनी रहती कि किसी शौर्यवान पारसीक राजा द्वारा यह कष्टकारक कार्रवाई बढ़ सकती है और वह यूनान के विरुद्ध युद्ध भी छेड़ सकता है। कीर्ति के लिए उत्सुक और यूनान के साथ तादात्म्य स्थापित करने के लिए मन की अभिलाषाओं की उर्वर भूमि पर खड़े युवा सिकंदर को यूनान के पुराने शत्रु परसिया पर आक्रमण करके दोनों चीजें पा लेने के लिए अन्य कोई उत्तम उपाय नहीं दिखाई दिया।
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