जीवनी/आत्मकथा >> सिकन्दर सिकन्दरसुधीर निगम
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जिसके शब्दकोष में आराम, आलस्य और असंभव जैसे शब्द नहीं थे ऐसे सिकंदर की संक्षिप्त गाथा प्रस्तुत है- शब्द संख्या 12 हजार...
सामने ग्रेनीकोस नदी थी। नदी पार करते हुए सिकंदर को परसिया की सुदृढ़ सेना द्वारा रोका गया और भालों की बौछार से उसकी गति बाधित कर दी गई। पर सिकंदर ने भालों की बौछार के बीच अपनी अश्वसेना के साथ नदी पार की और पदाति सैनिकों के आने के लिए मार्ग बनाया।
नदी के पार भयंकर युद्ध प्रारंभ हो गया। सिकंदर ने सेना में सबसे आगे रहकर युद्ध किया। उसके ऊपर तीखे प्रहार हुए क्योंकि उसके शिरस्त्राण में दोनों ओर लगे पंखों की वजह से वह दूर से पहचाना जा सकता था। ऐसा ही एक भयंकर क्षण तब आया जब उसकी जान पर बन आई। उसके एक महत्वपूर्ण सैन्य अधिकारी क्लीतोस ने बड़ी तेजी से अपना भाला शत्रु पर फेंक कर सिकंदर की प्राण रक्षा की। सिकंदर ने कृतज्ञता से अपने प्राण-रक्षक क्लीतोस की ओर देखा जिसके नेत्रों में संतोष की आभा थी। सिकंदर ने कभी सोचा भी न होगा कि अपने प्राणरक्षक क्लीतोस का ऋण एक दिन उसका वध करके चुकाएगा।
पारसीक सेना पराजित होकर पलायन कर गई तथा अपने पीछे जिरह-बख्तर का जख़ीरा छोड़ गई। सिकंदर ने सबसे निकटस्थ नगर राज्य एथेंस को जलमार्ग द्वारा पार्थेनोन को जिरह-बख्तर की 300 पेटियां इस संदेश के साथ भेजी: ‘‘फिलिप और स्पार्ता को छोड़कर समस्त यूनान के पुत्र सिकंदर ने यह माल एशिया के बर्बरों से जीता है।’’ इस प्रकार सिकंदर ने एक ही संक्षिप्त वाक्य में पारसीकों के प्रति घृणा, स्पार्टा के प्रति अत्यधिक घृणा और यूनान के हित को आगे बढ़ाने का विश्वास प्रकट कर दिया।
आगे सिकंदर के नायक एकिलीस की कर्मभूमि त्राॅय मिलती है। भावुक सिकंदर ने एकिलीस को श्रद्धांजलि दी। परसिया की प्रांतीय राजधानी सार्डिस ने आत्मसमर्पण करके अपना राज्य कोषागार सिकंदर के हवाले कर दिया। फिर आयोनिया के तट के सहारे आगे बढ़ते हुए कारिया में हालीकार्नासोस के दुर्ग पर पहला सफल घेरा डाला। दुर्ग कठिनाई से मिला। भृत्िासैनिकों के रोड्स के कप्तान मेमनोन तथा कारिया के पारसीक क्षत्रप ओरंटोबेट्स को समुद्री मार्ग से पलायन करने को मकदूनों ने विवश कर दिया। सिकंदर ने कारिया का शासन आदा नाम की महिला को सौंप दिया जिसे सिकंदर इतना भाया कि उसे उसने गोद ले लिया।
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