इतिहास और राजनीति >> शेरशाह सूरी शेरशाह सूरीसुधीर निगम
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अपनी वीरता, अदम्य साहस के बल पर दिल्ली के सिंहासन पर कब्जा जमाने वाले इस राष्ट्रीय चरित्र की कहानी, पढ़िए-शब्द संख्या 12 हजार...
हुमाऊं की दुश्वारियां
चुनार का दुर्ग बड़ा सुदृढ़ और अभेद्य माना जाता था। अपनी महत्वपूर्ण स्थिति के कारण पूर्व का फाटक समझा जाता था। इसका महत्व इस कारण और था कि यहां इब्राहिम लोदी का खजाना उसके सामंत ताज खान सारंगखानी की हिफाजत में रखा गया था। यह दुर्ग ताज खान के अधीन था। ताज खान अपनी पत्नी लाड मल्का के वशीभूत था। पिता की अपनी सैतेली मां मल्का में आसक्ति देखकर ताज खान के बड़े बेटे ने पहले लाड मल्का को घायल किया फिर पिता की हत्या कर चुनार से फरार हो गया। शेरखान ने इस अवसर का लाभ उठाकर दुर्ग पर कब्जा कर लिया। लाड मल्का से प्रणय निवेदन के बाद उससे 1529 में शादी कर ली। दुर्ग में विशाल संपत्ति मिली जिससे शेरखान की शक्ति में वृद्धि हो गई। आश्चर्य की बात है कि शेरखान के इस उद्धत व्यवहार पर बाबर ने कोई प्रतिक्रिया नहीं व्यक्त की। कुछ समय तक तो हुमाऊं ने भी शेरखान की ओर कोई ध्यान नहीं दिया परंतु कुछ समय पश्चात ददराह की सफलता से डरकर हुमाऊं ने हिन्दूबेग के अधीन सेना भेजकर चुनार दुर्ग को अधिकार में लेने की आज्ञा दी। शेरखान ने निष्ठा की घोषणा करते हुए कहा कि वह मुगलों के सामंत शासक के रूप में वहां का शासन चलाएगा। हिन्दूबेग ने उसकी सिफारिश करना मंजूर कर लिया और इस बात पर जोर दिया कि किला उसके हवाले कर दिया जाए। जब शेरखान इसके लिए तैयार नहीं हुआ तो खुद हुमाऊं वहां आ पहुंचा परंतु इस अभियान के सफलतापर्वूक समाप्त होने से पूर्व ही हुमाऊं को समाचार मिला कि मुहम्मद जमान मिर्जा ने विद्रोह कर दिया है तथा गुजरात के बहादुरशाह ने चित्तौड़ पर घेरा डाल दिया है। हुमाऊं ने आगरा जाने का निश्चय कर लिया और शेरखान की उन शर्तों को मान लिया जिन्हें हिन्दूबेग नामंजूर कर चुका था।
जब हुमाऊं अन्यत्र व्यस्त था, शेरखान ने बिहार का प्रशासन संभाला और बंगाल की कीमत पर अपनी सेनाओं को बढ़ाया। 1536 ई. तक उसने सीमाओं को सीकरीं गली (बंगाल) तक बढ़ा लिया।
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