इतिहास और राजनीति >> शेरशाह सूरी शेरशाह सूरीसुधीर निगम
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अपनी वीरता, अदम्य साहस के बल पर दिल्ली के सिंहासन पर कब्जा जमाने वाले इस राष्ट्रीय चरित्र की कहानी, पढ़िए-शब्द संख्या 12 हजार...
अफगान शक्ति के इस विस्तार ने हुमाऊं को चैकन्न कर दिया और घटनाओं ने शीघ्र ही बंगाल और बिहार पर चढ़ाई करने को बाध्य किया। हुमाऊं ने चुनार से शेरखान के बेटे कुतुबखान को बंदी बनाया और 500 सैनिकों की निगरानी में उसे आगरा भेज दिया। जब हुमाऊं मालवा में फंसा हुआ था कुतुबखान भाग निकला और अपने पिता से जा मिला।
शेरखान ने बंगाल पर चढ़ाई कर दी जहां का शासक गयासुद्दीन महमूद था। वह गौर में छिप गया और हुमाऊं से सहायता की प्रार्थना की। चुनार पर घेरा डालने और उस पर अधिकार करने में हुमाऊं ने छह महीनों का (अक्टूबर 1537 से मार्च 1538) बहुमूल्य समय गंवा दिया। शेरखान उसे बातचीत में उलझाए रहा और अप्रैल 1538 में गौर पर अधिकार कर लिया। गयासुद्दीन भाग निकला और हुमाऊं के खेमे में जा पहुंचा। शरीर में लगे घावों के कारण उसकी मृत्यु हो गई। बंगाल जाते हुए हुमाऊं का मार्ग तब तक रोके रखा गया जब तक वहां का खजाना बिहार के रोहतास दुर्ग में नहीं पहुंचा दिया गया। उसके बाद हुमाऊं गौर में प्रविष्ट हुआ। वह बंगाल पर अधिकार कर शेरखान पर दबाव डालना चाहता था। हुमाऊं ने मांग की, ‘‘शेरखान राजसी क्षत्र और सिंहासन सहित बंगाल में लूटा सारा माल और रोहतास दुर्ग उसके हवाले कर दे और चुनार या वैसा ही कोई दुर्ग ले ले।’’ शेरखान ने यह स्वीकार नहीं किया। उसने बिहार सौंपकर बंगाल का मुगल सामंत बनने और 10 लाख टका वार्षिक देने की बात कही। हुमाऊं ने इसे नहीं माना। इसके बाद हुमाऊं छह महीने तक रंगरेलियां मनाता रहा।
इधर शेरखान ने अपने समर्थकों को एकत्र किया और चुनार, बनारस, जौनपुर, कन्नौज और पटना पर अधिकार कर लिया। हुमाऊं आगरा लौटना चाहता था पर शेरखान ने मार्ग अवरुद्ध कर दिया।
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