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इतिहास और राजनीति >> शेरशाह सूरी

शेरशाह सूरी

सुधीर निगम

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :79
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 10546
आईएसबीएन :9781613016336

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अपनी वीरता, अदम्य साहस के बल पर दिल्ली के सिंहासन पर कब्जा जमाने वाले इस राष्ट्रीय चरित्र की कहानी, पढ़िए-शब्द संख्या 12 हजार...


मुगल दरबार में शेरखान की धाक जमती गई। वह मुगलों की सैनिक व्यवस्था, शासन-प्रबंध, आचार-विचार और चारित्रिक विशेषताओं का ज्ञान प्राप्त करने लगा। परंतु इस व्यवस्था से प्रभावित न हो सका। वह अफगानों के बीच अक्सर कहा करता, ‘‘यदि भाग्य ने मेरा साथ दिया तो मैं एक दिन निश्चय ही मुगलों को खदेड़कर हिन्दुस्तान से बाहर करूंगा।’’ उसकी यह डींग पहले तो मुगल दरबारियों के कानों तक पहुंची फिर बाबर को भी ज्ञात हुई। इसके पूर्व बाबर उसे कैद करवा लेता चतुर शेरखान घोड़े पर बैठकर नौ दो ग्यारह हो गया।

सचमुच आश्चर्य की बात है कि बाबर जैसा इंसानों का पारखी शेरखान के सौम्य तौर तरीके के झांसे में आ गया। जब शेरखान बाबर की सेवा में आया था तब बाबर ने अपने लोगों से कहा था, ‘‘यह अफगान छोटी-मोटी परेशानियों से घबराने वाला नहीं, इसमें महान् बनने की संभावनाएं हैं- शेरखान पर नजर रखना।’’

अब शेरखान को शक्तिशाली अफगान शासकों से राज्य को बचाना था। उसने बंगाल के शासक नुसरत शाह से प्रार्थना की कि वह बिहार पर नजर न डाले। किंतु नुसरत खान ने उसकी बात नहीं मानी। शेरखान ने मखदुमए आलम से दोस्ती कर ली जो नुसरत खान का मित्र था। इस संबंध से नुसरत खान के कान खड़े हो गए और उसने मखदुमए आलम को मरवा दिया। उसकी अकूत संपत्ति शेरखान के हाथ आ गई। नुसरत शाह से चली लड़ाई में शेरखान विजयी रहा। उसके बाद बंगाल के शासक ने कुछ समय के लिए उसे परेशान नहीं किया।

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